शनिवार, 27 सितंबर 2008

गोरक्ष -‘श्रीगिरिजा दशक’: एक सिद्ध प्रयोग



‘श्रीगिरिजा दशक’: एक सिद्ध प्रयोग

बैल पर बैठे हुए शिव पार्वती का ध्यान कर माँ पार्वती से दया की भीख माँगनी चाहिए। जैसे सन्तान पेट दिखाकर माता से माँगती है, वैसे ही माँगना चाहिए। कल्याण की इच्छा होगी तो माँ अवश्य सर्वतोमुखी कल्याण करेगीं।

मन्दार कल्प हरि चन्दन पारिजात मध्ये सुधाब्धि1 मणि मण्डप वेदि संस्थे।
अर्धेन्दु-मौलि-सुललाट षडर्ध नेत्रे, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।1
आली-कदम्ब-परिशोभित-पार्श्व-भागे, शक्रादयः सुरगणाः प्रणमन्ति तुभ्यम्।2
देवि ! त्वदिय चरणे शरणं प्रपद्ये, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।2
केयूर-हार-मणि-कंकण-कर्ण-पूरे, कांची-कलापमणि-कान्त-लसद्-दुकूले।
दुग्धान्न-पूर्ण3-वर-कांचन-दर्वि-हस्ते, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।3
सद्-भक्त-कल्प-लतिके भुवनैक-वन्द्ये, भूतेश-हृत्-कमल-लग्न-कुचाग्र-भृंगे !
कारूण्य-पूर्ण-नयने किमुपेक्ष्यसे मां, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।4
शब्दात्मिके शशि-कलाऽऽभरणाब्धि-देहे, शम्भोः उरूस्थल-निकेतन-नित्यवासे।
दारिद्र्यदुःखभय हारिणि ! का त्वदन्या, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।5
लीला वचांसि तव देवि! ऋगादि-वेदाः, सृष्टियादि कर्मरचना भवदीय चेष्टाः।
त्वत्तेजसा जगत् इदं प्रतिभाति4 नित्यं, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।6
वृन्दार वृन्द मुनि5 नारद कौशिकात्रि व्यासाम्बरीष कलशोद्भव कश्यपादयः6
भक्त्या स्तुवन्ति निगमागम सूक्त मन्त्रैः, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।7
अम्ब ! त्वदीय चरणाम्बुज सेवनेन, ब्रह्मादयोऽपि विपुलाः श्रियमाश्रयन्ते।
तस्मादहं तव नतोऽस्मि पदारविन्दे, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।8
सन्ध्यालये7 सकल भू सुर सेव्यमाने, स्वाहा स्वधाऽसि पितृ देव गणार्त्ति हन्त्रि।
जाया सुतो परिजनोऽतिथयोऽन्य कामा, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।9
एकात्म मूल निलयस्य महेश्वरस्य, प्राणेश्वरि ! प्रणत भक्त जनाय शीघ्रम्।
कामाक्षि! रक्षित जगत त्रितये अन्न पूर्णे, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे! क्षुधिताय मह्यम्।।10
भक्त्या पठन्ति गिरिजा दशकं प्रभाते, कामार्थिनो बहु धनान्न समृद्धि कामा।
प्रीत्या महेश वनिता हिमशैलकन्या, तेभ्यो ददाति सततं मनसेप्सितानि।।11
मन्दार कल्पवृक्ष, श्वेत चन्दन एवं पारिजात वृक्षों के मध्य में अमृत सिन्धु के बीच मणि मण्डप की वेदी पर बैठी हुई, सुन्दर ललाट पर अर्ध चन्द्रमा से सुशोभिता एवं तीन नेत्रोंवाली हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
आपके दोनों ओर सखियाँ शोभायमान हैं, इन्द्रादि देवगण आपको नमस्कार करते हैं, हे देवि ! मैं आपके चरणों की शरण लेता हूँ। मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
भुजबन्ध, मणियों का हार, कंकन, कर्णाभूषण, करधनी और मणियों के समान सुन्दर वस्त्र पहने तथा हाथों में खीर से भरी हुई श्रेष्ठ सोने की थाली लिए हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
कल्पलता के समान सच्चे भक्तों की सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली, अखिल विश्व पूजिता, भगवान शंकर के हृदय कमल में अपने कुचाग्र रूपी भौरों के द्वारा प्रविष्टा और दया पूर्ण नेत्रोंवाली हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
शब्द ब्रह्म स्वरूपे, अर्द्ध चन्द्र के आभूषण से विभूषित शरीर वाली और शिव के हृदय में सदा निवास करने वाली, आपके अतिरिक्त दरिद्रता के दुःख और भय को दूर करने वाला अन्य कोई नहीं है। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
हे देवि ! ऋक् आदि वेदों की वाणी आपके ही लीला वचन है। सृष्टि आदि क्रियाएँ आपकी ही चेष्टा हैं। आपके तेज से ही यह विश्व सदा दिखाई देता है। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
देव समूह, मुनि नारद, कौशिक, अत्रि, व्यास, अम्बरिष, अगस्त्य, कश्यप् आदि भक्ति पूर्वक वेद और तन्त्र के सूक्त मन्त्रों से आपकी स्तुति करते हैं। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
हे माँ ! तुम्हारे चरणों की सेवा से ब्रह्मा आदि भी अपार ऐश्वर्य पा जाते हैं। अतः मैं आपके चरण कमलों में नत मस्तक हूँ। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
सन्ध्या समय समस्त ब्राह्मणों द्वारा वन्दिता, पितरों व देवों के दुःख की नाशिका ‘स्वाहा-स्वधा’ आप ही हैं। मैं पत्नी, पुत्र, सेवक, अतिथियों एवं अन्य कामनाओंवाला हूँ। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
हे एकात्मा मूल महेश्वर की प्राणेश्वरि ! प्रणत भक्तों पर शीघ्र कृपा करने वाली हे कामाक्षि ! हे अन्नपूर्णे ! तीनों लोकों की रक्षा करने वाली हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए।
बहु धन अन्न और ऐश्वर्य चाहने वाले जो लोग प्रातः काल इस ‘गिरिजा दशक’ को पढ़ते हैं, उन्हें महेश प्रिया, हिमालय पुत्री सदैव प्रेम पूर्वक मनचाही वस्तूएँ प्रदान करती हैं।

गोरक्ष नाथ शिष्य भ॰ गहिनीनाथ परम्परा के शाबर मन्त्र

भ॰ गहिनीनाथ परम्परा के शाबर मन्त्र
॰ “ॐ निरञ्जन जट-स्वाही तरङ्ग ह्राम् ह्रीम् स्वाहा”
२॰ “ॐ रा रा ऋतं रौभ्यं स्तौभ्यं रिष्टं तथा भगम्।
धियं च वर्धमानाय सूविर्याय नमो नमः।।”
विधि- नित्य प्रातःकाल स्नान के बाद उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। ऐसा ८ दिन करने से मन्त्र सिद्ध होते हैं। बाद में नित्य २७ बार जप करें।

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

नित्याय नाथाय निराजनाया , निवांत निष्कंप - शिखोप्माया
ज्योति स्वरूपाय नमो निभाया, गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

मत्सेय्न्द्र शिष्याय महेश्वराय ,योग प्रचारय वपुर्धाराय
अयोनिजयामर विग्रह हाय , गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

शुद्धाय ,बुद्धाय , विमुक्ताकाया ,शान्ताय दान्ताय निरामयाय
सिद्धेश्वरयारिवल संश्रायाय ,गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

कर्पुर गौरया , जताधरय , कर्नान्त विश्रांत विलोचनाय
त्रिशुलिने भूति विभुशिताया गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

अनाथ नाथाय जग्द्विताया, कृपा कटो क्षद घृत कन्ताकाया
अपामर्ण योग सुधा प्रदाय , गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय











बुधवार, 24 सितंबर 2008

श्री गोरक्ष कवच

श्री गणेशाय नमः ,श्री दत्तात्रेय नमः ,श्री दत्ता गोराक्षनाथाया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , पूर्वस्य इन्द्राय नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , आग्नेय अत्रे नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , दक्षिन्स्याह यमय नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , नैरुत्य नैरुतिनाथाया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः ,पश्चिमे वरुणाय नमः
दं वं तं दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,वायव्य वायवे नमः
दं वं तं दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,उत्तरस्य कुबेराय नमः
दं वं तं दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,ईशान्य ईश्वराय नमः
दं वं तं दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,उर्ध्वा अर्थ श्वेद्पाया नमः
दं वं तं दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,अथ भूमि देवताये नमः
दं वं तं दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,मध्य प्रकाश ज्योति देवताये नमः

!! नमस्ते देव देवेश विश्व व्यपिं मौएश्वरम दत्त गोरक्ष कवचं स्तवराज वदमप्रभो!!१!!ईश्वर उवाच ,

शृणु शैल्भुते सत्यं मर्ज मायादितं येन विसान मार्गेन जीवन मुक्तो भावेभर
सार्वज त्वं कार्यसिद्धि लाभते परम भुक्तं ,वाकसिद्धि, योग सिद्धि लाभते चितीसार्थाकम

न दुष्ट भयः प्रदाव्य न दातव्य कुलेश्वरी , वि प्रपंच काया शिष्याय

शिव गोरक्ष नाथ स्तोत्रराज

नमो s हं कलये हंसो हंसो s हं कलयेन्वहम !
नमो s हं कलये हंसो हंसो s हं कलयेन्वहम !!

अनन्यमानसो हंसो मानसं पद्मश्रीतहा
अनन्यमानसो हंसो मानसं पद्मश्रीतहा


क्ष मा क्ष गो क्ष ! क्ष गो क्ष मा क्ष
का हा रा , रा हा का जे

घ न सा र द ना था य य था ना द र सा ना घ !
ते स्तु मो न र धा मा हे ,हे मा धा र ! न मो s स्तु ते !!

वि भू सं म त ,ना दो वा वा दो ना त म सं भू वि !
ते स्तु मो न य वा दे शं,शं देवाय न मो s स्तु ते !!

न व पा र द सा या मा , मा या सा द र पा व न !
ते स्तु मो न व मी ना र्या ना मी व न मो s स्तु ते !!

व न जा नि व शा वे शा , शा वे श व नि जा न व !
का यि ना नु तं शं खे न , न खे शं त नु ना यि का !!

किं न ही न ज र दे व , व दे र ज न ही न कि म !
दा स सा र s म से वा , वा से मा स र सा स दा !!

स व ने ज य दे वे शा , शा वे दे य ज ने व स !
ता र या ज र वै दे वे , वे दे वै र ज या र ता !!


भा शु भा स ज रा भा षा , सा भा रा ज स भा शु भा !
सा र रा ज त या भा सा , सा भा या त ज रा र सा !!

श्री मानार्य कृतः समोपुमयतः श्री स्तोत्र राजोघुनाह !
नाथना गुद्मावाहन विजयातेह निर्णित सारो रसः !!
पक्षे दक्ष विचारितेपी जनायान्नानंद मन्यर्थदो !
बालाना शरनार्थिना शरण दो वर्वर्ति सर्वोपरि !!

शिवम्

स्वस्ति श्री श्रेयः श्रेनयः श्रीमतां समुल्लसन्तुत्रम
इति श्री गोरक्षनाथ स्तोत्रराज सम्पुर्ण !!
















मंगलवार, 23 सितंबर 2008

शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

तुम सत चित आनंद सदाशिव आगम -निगम परे
योग प्रचारण कारण युग युग गोरख रूप धरे............ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

अकाल-सकल-,कुल-अकुल,परापर,अलख निरंजन
भावः-भव-विभव-पराभव-कारन ,योगी ध्यान धरे..............शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

अष्ट सिद्धि नव निधि कर जोर लोटत चरण तले
भुक्ति मुक्ति सुख सम्पति यती पति सब तब एव करे.................... शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

कुंडल मंडित गंडा स्थल छवि कुंचित केश धरे
सदय नयन स्मरानन युवतन अंग अंग ज्योति जारे............. शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

अमर काया अवधूत अयोनिज सुर नर नमन करे
तब कृपया पराया परिवेष्टित अधमहू पर तारे............. शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

कृष्ण रुक्मिणी परिणय प्रकरण देवन विघ्न करे
सुनी रुषी मुनि बिनती तुम प्रकट कंगन बन्ध करे...... शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

सदगुरु विषम विषय विष मूर्छित तिरिया जल परे
जग मछन्दर गोरख आया गा उधर करे......... शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

प्रिय वियोग भरतरी विहल विकल मसान फिरे
महा मोहतम दयानिधि सिद्धि समृद्ध करे........... शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष
हरे


शनिवार, 20 सितंबर 2008

श्री नवग्रह शाबर मंत्र

श्री नवग्रह शाबर मंत्र



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ॐ गुरु जी कहे, चेला सुने, सुन के मन में गुने, नव ग्रहों का मंत्र, जपते पाप काटेंते, जीव मोक्ष पावंते, रिद्धि सिद्धि भंडार भरन्ते, ॐ आं चं मं बुं गुं शुं शं रां कें चैतन्य नव्ग्रहेभ्यो नमः, इतना नव ग्रह शाबर मंत्र सम्पूरण हुआ, मेरी भगत गुरु की शकत, नव ग्रहों को गुरु जी का आदेश आदेश आदेश !


is मंत्र का १०० माला जप कर सिद्धि प्राप्त की जाती है. अगर नवरात्रों में दशमी तक १० माला रोज़ जप जाये तो भी सिद्धि होती है. दीपक घी का, आसन रंग बिरंगा कम्बल का, किसी भी समय, दिशा प्रात काल पूर्व, मध्यं में उत्तर, सायं काल में पश्चिम की होनी चाहिए. हवन किया जाये तो ठीक नहीं तो जप भी पर्याप्त है. रोज़ १०८ बार जपते रहने से किसी भी ग्रह की बाधा नहीं सताती है

गोरक्षनाथ (१०००-११००)

एकदा श्री मत्सेंद्रनाथ अयोध्येजवळ जयश्री नामक गावात एका ब्राम्हणाच्या घरी भिक्षा मागण्यास गेले. घरातील स्त्रीने त्यांना मोठ्या आदराने भिक्षा घातली. त्या स्त्रीचा उदासीन चेहरा पाहून त्यांनी तीला त्याचे कारण विचारलं. तिने आपल्याला संतान नसल्यचे सांगितले. श्री मत्सेंद्र्नाथांनी तिच्या हातावर विभूती देऊन, ती तिला खायला सांगून ते निघून गेले. शेजारणीने ती विभूती खाण्यास तीला वंचित केले. त्या स्त्रीने ती विभूती उकिरड्यावर टाकून दिली. बारा वर्षानंतर श्री. मत्सेंद्रनाथ परत याच घरी आले. त्यांनी तिला मुला बद्दल विचारले. तेव्हां ती स्त्री घाबरली आणि तिने घडलेला प्रकार निवेदन केला. श्री. मत्सेंद्रनाथ त्या स्त्रीला घेऊन उकिरड्यावर गेले व अलख शब्द उच्चारताच तेथे एक तेजस्वी बालक प्रकट झाला व त्याने सर्वांना वंदन केले. हेच बालक पुढे 'गोरक्षनाथ' म्हणून प्रसिध्दीस आले.

श्री। म्त्सेंद्रनाथ या बालकाला आपल्या बरोबर घेऊन गेले. त्यांनी त्याला योगाभ्यासाचे शिक्षण, गुरुपदिष्ट मार्गाची साधना करुन घेतली. योगबळाने त्यांना चिरंजिवीत्व प्राप्त झाले होते. ते कवीही होते. त्यांचे गोरखबानी, सिध्द सिध्दांतपध्दती, अमनस्क योग, विवेक मार्तंड, गोरक्षबोध, गोरख शतक आदी ग्रंथ प्रसिध्द आहेत. नेपाळी लोक त्यांना पशुपतीनाथांचा अवतार मानतात. नेपाळ मध्ये त्यांचे काही ठिकाणी आश्रम आहेत. तसेच नाण्याच्या एका बाजूस त्यांचे नाव आधळते. गोंडाजिल्ह्यातील पारेश्वरी त्यांचा योगाश्रम असून महाराष्ट्रातील औंढानागनाथ ही त्यांची तपोभूमी मानली जाते. पुण्य पुरुषांच्या मालिकेत पहिल्या चारात(कृष्ण, पतंजली, बुध्द, गोरक्षनाथ) गोरक्षनाथांचे स्थान महत्त्वाचे आहे

श्री ज्ञानेश्वरांचे पणजे त्र्यंबकपंत यांच्यावर गोरक्षनाथांची कृपा होती व आजोबा गोविंदपंत यांच्यावर गहिनीनाथांची कृपा होती. श्री. मत्सेंद्रनाथ हे श्री. गोरक्षनाथांचे गुरु व श्री. गहिनीनाथ हे श्री गोरक्षनाथांचे शिष्य होत. निवृत्तीनाथ हे गहिनीनाथांचे शिष्य व ज्ञानेश्वर, सोपानदेव, मुक्ताबाई हे निवृत्तीनाथांचे शिष्य होत. नाथपंथाचा संपूर्ण भारतात प्रचार व प्रसार करणारे प्रभावी व कुशल व्यक्तिमत्व या शब्दात त्यांचे आगळेपण सांअगता येईल.

श्री. गोरक्षनाथांनी आसेतु हिमाचलाची यात्रा करुन अनेक राजांना अनेक लोकांना या मार्गाची दिक्षा(नाथपंथ) दिली. त्यापैकीच एक अध्वर्यु गहिनीनाथ हे होत. गहिनीनाथांचे नाशिक जवळील ब्रम्हगिरिच्या गुहेत वास्त्व्य असताना निवृत्तीनाथ त्यांचे शिष्य झाले व निवृत्तीनाथांनी लावलेले हे नाथ पंथांचे रोपटे संत ज्ञानेश्वरांच्या रुपाने आकाशाला भिडले. जसे उत्तरभारतात गोरक्षनाथांचे महत्त्व आहे, तसे महाराष्ट्रात ज्ञानेश्वरांचे महत्त्व आहे. ज्ञानेश्वरांनी नाथ पंथाला भक्तीमार्गाची जोड देऊन त्याचा प्रसार केला. गोरक्षनाथांचा प्रभाव त्यांच्या नंतरच्या सर्वच संतांवर उदा. कबीर, नानक, मीराबाई, ज्ञानेश्वर यांच्यावर स्पष्ट दिसून येतो.

श्री गोरक्षनाथांचे ग्रंथ मुख्यत: संस्कृत व हिंदीत आहेत। त्यातील कित्येक ग्रंथ काळाच्या ओघात नाहिस झाले. त्यांचे अमनस्क, अमरौध शासनम्, गोरक्षपध्दती, गोरक्षसंहिता, सिध्द सिध्दांत पध्दती हे खूप महत्त्वाचे ग्रंथ आहेत.

गोरक्षांचा हा आद्य सिध्दांत आहे की, जे ब्रम्हांडात आहे ते सारे सूक्ष्म प्रमाणात पिंडात आहे. नाथमार्गी साधक या शक्तीच्या उपासनेसाठी शरीराला प्रमुख साधन मानतात, पण शंक्तींचे प्रमुख संचलन नसून शिवशक्तीचे ऐक्य म्हणजेच सहज समाधी साधते हेच खरे ध्येय आहे.

व्दंव्दातील अवस्था प्राप्त झाली म्हणजे अ-मन अवस्था प्राप्त होते. सम दृष्टी प्राप्त होते. या अवस्थेलाच समाधी, कैवल्य, सहजसमाधी, महाशून्यावस्था असे म्हटले आहे. या योगात ब्रम्हचर्य ही प्राप्ती आहे. पण या मार्गात ब्रम्हचर्याची शपथ घेउन इंद्रिय दमनाची शिकवण नाही. गृहस्थाश्रमात राहूनही हा योग साधता येतो, गोरक्षनाथांचा मार्ग म्हणजे उपनिषदांनी सांगितलेला राजयोगच. रिध्दी-सिध्दी प्राप्त करण्याचे या मार्गाचे ध्येय नाही. साधकाने त्यापासून दूर राहणे आवश्यक आहे.

आपल्या अंतर्यांमी बुडी घेणे हाच योगमार्ग गोरक्षनाथांना अभिप्रेत आहे. गोरक्षांच्या शब्दात, "रिध्दी परहैसे, सिध्दी लेहू बिचारी". गोरक्षांनी म्हटले आहे,"छाछी छाछी पंडिता लेवी, सिध्दा माखत खाया।" पांडित्यावर व धर्माच्या नावाखली चालणार्या कर्मकांडावर त्यांनी चांगलाच प्रहार केला आहे. ते म्हणतात, "पाषाणाची देवली, पाषाणाचा देव, पाषाण पूजिता, कैसा फिटला, संदेह "

शिव गोरख ध्यान

शिव गोरख ध्यान

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

ॐ शिव गोरख योगी

गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा...

गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा...

दोहा

गणपति गिरिजा पुत्र को सुमरूं बारम्बार
हाथ जोड़ विनती करूं शारदा नाम आधार

सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश
माता पिता कुलगुरु देवता सत्संग को आदेश
आकाश चन्द्र सूरज पावन पानी को आदेश
नव नाथ चौरासी सिद्ध अनंत कोटि सिद्दों को आदेश
सकल लोक के सर्व संतों को सत् सत् आदेश
सतगुरु मच्छिन्द्र-नाथ को हर्दय पुष्प अर्पित कर आदेश

|| ॐ नमः शिवाये ||

चौपाई
जय-जय गुरु मच्छिन्द्रनाथ अविनाशी कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी
जय-जय गुरु मच्छिन्द्रनाथ गुण ज्ञानी इच्छा रूप योगी वरदानी
अलख निरंजन तुम्हारो नामा सदा करो भक्तन हित कामा
नाम तुम्हारा जो कोई गावे जन्म-जन्म के दुःख मिट जावे
जो कोई गुरु मच्छिन्द्र नाम सुनावे भूत पिशाच निकट नहीं आवे

ज्ञान तुम्हारा योग से पावे रूप तुम्हारा वर्णत न जावे
निराकार तुम हो निर्वाणी महिमा तुम्हारी वेद् ना जानी
घट-घट के तुम अन्तर्यामी सिद्ध चौरासी करे प्रणामी
भस्म अंग गल नाद विराजे जटा सीस अति सुन्दर साजे
तुम बिन देव और नहीं दूजा देव मुनि जन करते पूजा

चिदानंद संतन हितकारी मंगल करण अमंगल हारी
पूर्ण ब्रह्मा सकल घटवासी गुरु मच्छिन्द्र सकल प्रकाशी
गुरु मच्छिन्द्र-गुरु मच्छिन्द्र जो कोई ध्यावे ब्रह्मा रूप के दर्शन पावे
शंकर रूप धर डमरू बाजे कानन कुण्डल सुंदर साजे
नित्यानंद है नाम तुम्हारा असुर मार भक्तन रखवारा

अति विशाल है रूप तुम्हारा सुर नर मुनि जन पावे न पारा
दीन बन्धु दीन हितकारी हरो पाप हम शरण तुम्हारी
योग मुक्ति में हो प्रकाशा सदा करो सन्तन तन वासा
प्रातः काल ले नाम तुम्हारा सिद्धी बड़े अरु योग प्रचारा
हठ-हठ-हठ गुरु मच्छिन्द्र हठीले मार-मार बैरी के कीले

चल-चल-चल गुरु मच्छिन्द्र विकराला दुश्मन मार करो बेहाला
जय-जय-जय गुरु मच्छिन्द्र अविनाशी अपने जन की हरो चौरासी
अचल अगम है गुरु मच्छिन्द्र योगी सिद्धी देवो हरो रसभोगी
काटो मार्ग यम् को तुम आई तुम बिन मेरा कौन साहाई
अजर अमर है तुम्हारी देहा सनका दिक् सब जो रही नेहा

कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा हे प्रसिद्ध जगत उजिआरा
योगी लिखे तुम्हारी माया पार ब्रह्मा से ध्यान लगाया
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे अष्ट सिद्धी नव निधि धर पावे
शिव मच्छिन्द्र है नाम तुम्हारा पापी ईष्ट अधम को तारा
अगम अगोचर निर्भय नाथा सदा रहो सन्तन के साथा

शंकर रूप अवतार तुम्हारा गौरव गोपीचंद्र भर्तहरी को तारा
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी कृपा सिन्धु योगी चमत्कारी
पूर्ण आस दास की कीजे सेवक जान ज्ञान को दीजे
पतित पावन अधम अधारा तिनके हेतु तुम लेत अवतारा
अलख निरंजन नाम तुम्हारा अगम पथ जिन योग प्रचारा

जय-जय-जय गुरु मच्छिन्द्र भगवाना सदा करो भक्तन कल्याना
जय-जय-जय गुरु मच्छिन्द्र अविनाशी सेवा करे सिद्धी चौरासी
जो ये पढ़हि गुरु मच्छिन्द्र चालीसा होए सिद्ध साक्षी जगदीशा
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे और श्रद्धा से भेंट चडावे
बारहा पाठ पड़े नित जोई मनोकामना पूर्ण होई

दोहा

सुने सुनावे प्रेम वश पूजे अपने हाथ, मन इच्छा सब कामना पुरे गुरु मच्छिन्द्रनाथ
अगम अगोचर नाथ तुम पारब्रह्मा अवतार, कानन कुण्डल सिर जटा अंग विभूति अपार
सिद्ध पुरुष योगेश्वरी दो मुझको उपदेश, हर समय सेवा करूँ सुबह शाम आदेश


बुधवार, 17 सितंबर 2008

नमो गोरक्षा

या गोरक्ष सर्वभूतेषु ओमकार रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो
गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु श्री श्री श्री रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु गुरु रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु ब्रह्म रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु हरी रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु शिव रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु बटुक रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु महाकाल रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु महामृत्युंजय रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा
सर्वभूतेषु अदि रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

या गोरक्षा सर्वभूतेषु अनंत रूपें संस्थिता
नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

सोमवार, 15 सितंबर 2008

गोरक्षनाथ स्तवनं

गोरक्षा स्तवनं

आत्मा खलु विश्व मुलं,ॐ क्रुन्वान्तो विश्वमार्यम
गोरक्षा बालम,गुरु शिष्य पालम,शेष हिमालम,शशि खंड भालं,,,१
कलाय्स्य कलम,जित जन्म जालं,वंदे जटा लम ,जग्दाब्जा नालं........
गोरक्षनाथ भवरुपा भवभ्दिपोत,भक्तार्तिनाशन विभो करुनैक्मुरते,
त्वात्पद पद्मा मकरंद मधु व्रतोहम ,तापं मदीय मनसो हर देव सेः...

गोरक्षनाथ मई चेत करुनात वेद्रूक, दिन स्वदिय चरणौ शरणम प्रपद्ये.
नश्येंदा वश्य मैथ मन संवेदना में, सिद्धि ब्रजेंनी खिल ब्रह्मा विधिर्ही लोके...
गोरक्षनाथ रजसा चरण स्तिथेन पूतन शिरो भवति भक्त जनस्य नूनं ...

तवा दर्शन हरति तस्य समस्त चिंता, त्वत सेवनं हरति पापा पिशाच पुज्जम
हे नाथ ममापि विलोकय दीनबन्धो संताप तप्त हृदय कृपण क्षनेस्मिन
पदनाते शिरसी में वरदात्मा हस्त काम निधेहि गुरूदेओ,भवानुकुलाह
दोशाकरोस्मी भाग्वान्न्नुकाम्पनिया निर्दोषता न सुलभा जग्तितालेस्मिन
दोशाकरेपी विमल दुति संयुतेपी की लांचन मनुज दृष्टी patha न यती

गोरक्षनाथ मै तो एक निरंजन ध्याऊ ........

गुरूजी मै तो एक निरंजन ध्याऊ..........

दुःख ना जणू दरद न जणू, न कोई बैद बुलाऊ..

सदगुर बैद मिले अविनाशी,बाहू को नदी बताऊ............१
गंगा न जाऊ जमुना न जाऊ न कियो तीरथ न्हाऊ
अडसत तीरथ है घट भीतर बाहुमो मनमल धू........२
फुल न तोडू ,फ़तर न फोडू , न कोई झाड़ सताऊ
बनबन की मै लकड़ी न फोडू, न कोई देवल जाऊ..............३
कहे मछिंदर गोरख बोले,जोत में जोत मिलाऊ
सदगुरु जी शरण गए से आवागमन मतु.............४

मचिंदर नाथ-तोबी कच्चा बे कच्चा .........

तोबी कच्चा बी कच्चा, नहीं गुरु का बच्चा

दुनिया तजकर खाक लगायी,जाकर बैठा बन्मो,
खेचरी मुद्रा बज्रासन पर, ध्यान धरत है मनमो..........१

गुप्ता होवे परगट होवे, जावे मथुरा कशी ,प्राण किकले,
सिद्ध भय है, सत्य लोग का वाशी...................................२

तीरथ करकर उमर खोई,जोग जुगात्मो साडी,
धन ,कमिनिको नज़र न लावे, जोग कमाया भरी...................३

कुण्डलिनी को खूब चढावे ब्रह्मोरंध्रामो जावे,
चलता है पानी के ऊपर ,मुख बोले सो होवे..........................४

शत्रोमे कछु रही न बाकि,पुरा ज्ञान कमाया,
वेड विधि का मार्ग चलकर,तन का लाकर किया...........................५

कहे मछिंदर सुन रे गोरख,तीनो ऊपर जन, किरपा भाई,
जब सद्गुरु जी की, आप आप को चिह्न.....................................

सोही सच्चा बे सच्चा, ओही गुरु का बच्चा.............................

रविवार, 14 सितंबर 2008

मन्त्रपुश्पांजलि

सं सर्वात्मकं श्री सद्गुरुवे नमः, मन्त्रपुश्पांजलि समर्पयामि

ओमकाराची वलये सोऽहं च नाद , माता कुन्दलिनिला घाली साद,
तीव्र साधनेचे तरल पडसाद, मार्ग दाखविती माया मछिन्द्रनाथ

सांडोनी संशय धरी निर्धार , श्री गुरु मूर्ति कानीफा देईल आपार ,
सहज गुरु कृपा सागर , तुज नुपेक्षी सर्वदा,

गुरु हा संत कुलिचा राजा , गुरु हा प्राण विसावा माज़ा ..

अगर हम नवनाथ के नाम पर , तो नवनाथ हमारे काम पर .......................
अगर हम अपने काम पर , तो नवनाथ अपने निजधाम पर ................................

शनिवार, 13 सितंबर 2008

शिर्डी निवासी कानिफनाथ महाराज


शिर्डी निवासी कानिफनाथ महाराज


शिर्डी निवासी कानिफनाथ महाराज


गोरक्षा नवनाथ

!! गोरक्ष नवनाथ मंत्र !!



गोरक्षा जालंधर चर्पातास्चा अड़बंग कानिफ़मछिन्द्र राध्या

चौरंगी रेवानक भरतरी संदन्या ,भूम्या भूर्व नाथ सिद्ध

गोरक्षा नवनाथ

!! गोरक्ष नवनाथ मंत्र !!



गोरक्षा जालंधर चर्पातास्चा अड़बंग कानिफ़मछिन्द्र राध्या

चौरंगी रेवानक भरतरी संदन्या ,भूम्या भूर्व नाथ सिद्ध

गोरक्षा स्मरणं


नाकरोनादी रुपंच ठाकर स्थापय्ते सदा
भुवनत्रया में वैक श्री गोरक्ष नमोस्तुते,

न ब्रह्म विष्णु रुद्रो न सुरपति सुरा
नैव पृथ्वी न च चापो ------------१
नै वाग्नी नर्पी वायु , न च गगन तल
नो दिशों नैव कालं---------------२
नो वेदा नैव यध्न्या न च रवि शशिनो ,
नो विधि नैव कल्पा,--------------३
स्व ज्योति सत्य मेक जयति तव पद,
सचिदानान्दा मूर्ते----------------४

ॐ शान्ति ,अलख , ॐ शिव गोरक्ष ...........................
!! ॐ शिव गोरक्ष यह मंत्र है सर्व सुखो का सार ,जपो बैठो एकांत में ,तन की सुधि बिसार..........................!!

गोरक्षा स्मरणं


नाकरोनादी रुपंच ठाकर स्थापय्ते सदा
भुवनत्रया में वैक श्री गोरक्ष नमोस्तुते,

न ब्रह्म विष्णु रुद्रो न सुरपति सुरा
नैव पृथ्वी न च चापो ------------१
नै वाग्नी नर्पी वायु , न च गगन तल
नो दिशों नैव कालं---------------२
नो वेदा नैव यध्न्या न च रवि शशिनो ,
नो विधि नैव कल्पा,--------------३
स्व ज्योति सत्य मेक जयति तव पद,
सचिदानान्दा मूर्ते----------------४

ॐ शान्ति ,अलख , ॐ शिव गोरक्ष ...........................
!! ॐ शिव गोरक्ष यह मंत्र है सर्व सुखो का सार ,जपो बैठो एकांत में ,तन की सुधि बिसार..........................!!

ॐ शिव गोरक्ष स्तोत्र



श्री गणेशाय नमः ,श्री दत्तात्रय नमः ,श्री दत्ता गोराक्षनाथाया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,पूर्वस्य इन्द्राय नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , आग्नेय अत्रे नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , दक्शिनासाय यमाय नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः, नैरुताया नैरुतिनाथाया नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,पश्चिमे वरुणाय नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,वायव्य वायवे नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , उत्तरस्य कुबेराय नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,ईशान्य इश्वाराया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,उर्ध्वा अर्थ श्वेद्पाया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,अथाभुमिदेवाताया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,मध्य प्रकाश्ज्योती देवताया नमः
नमस्ते देव देवेश विश्व व्यापिं न मौएश्वाराम ,दत्त गोरक्ष कवच स्तवराज वदम प्रभो -------१
--------------------------------------------------------------
विश्वा धरं च सारं किल विमल तरं निष्क्रिय निर्विकारं
लोकाधाक्ष्यम सुवि क्षयं सुर नर मुनिभी स्वर्ग मोक्षेक हेतुम ,

स्वात्मा ,रामाप्ता कामं दुरितं विरहितं ह्याभा माध्न्या विहीनं
द्वंद्व तितं विमोहम विमल शशि निभं नमामि गोरक्षनाथं ........................

------------------------------------------------------------
गोरक्षनाथा योगिनाथा नाथ पंथी सुधारका, ध्यानासिद्धि तपोधनी ध्यान समनि अवधूत चिन्तिका ,साधकांचा गुरु होई योगी ठेवा साधका भक्त तुझा रक्ष नाथा ,कुर्यात सदा मंगलम शिव मंगलम गुरु मंगलम ,

-----------------------------------------------------------------------------------------------
ॐ शिव गोरक्ष अल्लख आदेश ,ॐ शिव जती गोरक्ष , सदगुरु माया मछिन्द्र नाथाय नमः ,ॐ नवनाथाया नमः .

ॐ शिव गोरक्ष स्तोत्र



श्री गणेशाय नमः ,श्री दत्तात्रय नमः ,श्री दत्ता गोराक्षनाथाया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,पूर्वस्य इन्द्राय नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , आग्नेय अत्रे नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , दक्शिनासाय यमाय नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः, नैरुताया नैरुतिनाथाया नमः ,
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,पश्चिमे वरुणाय नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,वायव्य वायवे नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , उत्तरस्य कुबेराय नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,ईशान्य इश्वाराया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,उर्ध्वा अर्थ श्वेद्पाया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,अथाभुमिदेवाताया नमः
ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,मध्य प्रकाश्ज्योती देवताया नमः
नमस्ते देव देवेश विश्व व्यापिं न मौएश्वाराम ,दत्त गोरक्ष कवच स्तवराज वदम प्रभो -------१
--------------------------------------------------------------
विश्वा धरं च सारं किल विमल तरं निष्क्रिय निर्विकारं
लोकाधाक्ष्यम सुवि क्षयं सुर नर मुनिभी स्वर्ग मोक्षेक हेतुम ,

स्वात्मा ,रामाप्ता कामं दुरितं विरहितं ह्याभा माध्न्या विहीनं
द्वंद्व तितं विमोहम विमल शशि निभं नमामि गोरक्षनाथं ........................

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गोरक्षनाथा योगिनाथा नाथ पंथी सुधारका, ध्यानासिद्धि तपोधनी ध्यान समनि अवधूत चिन्तिका ,साधकांचा गुरु होई योगी ठेवा साधका भक्त तुझा रक्ष नाथा ,कुर्यात सदा मंगलम शिव मंगलम गुरु मंगलम ,

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ॐ शिव गोरक्ष अल्लख आदेश ,ॐ शिव जती गोरक्ष , सदगुरु माया मछिन्द्र नाथाय नमः ,ॐ नवनाथाया नमः .

gorakhnath

















अलख निरंजन ॐ शिव गोरक्ष ॐ नमो सिद्ध नवं अनगुष्ठाभ्य नमः पर ब्रह्मा धुन धू कर शिर से ब्रह्म तनन तनन नमो नमः
नवनाथ में नाथ हे आदिनाथ अवतार , जाती गुरु गोरक्षनाथ जो पूर्ण ब्रह्म करतार
संकट मोचन नाथ का जो सुमारे चित विचार ,जाती गुरु गोरक्षनाथ ,मेरा करो विस्तार ,

संसार सर्व दुख क्षय कराय , सत्व गुण आत्मा गुण दाय काय ,मनो वंचित फल प्रदयकय
ॐ नमो सिद्ध सिद्धेश श्वाराया ,ॐ सिद्ध शिव गोरक्ष नाथाय नमः ।

मृग स्थली स्थली पुण्यः भालं नेपाल मंडले यत्र गोरक्ष नाथेन मेघ माला सनी कृता

श्री ॐ गो गोरक्ष नाथाय विधमाहे शुन्य पुत्राय धी माहि तन्नो गोरक्ष निरंजन प्रचोदयात ,

gorakhnath

















अलख निरंजन ॐ शिव गोरक्ष ॐ नमो सिद्ध नवं अनगुष्ठाभ्य नमः पर ब्रह्मा धुन धू कर शिर से ब्रह्म तनन तनन नमो नमः
नवनाथ में नाथ हे आदिनाथ अवतार , जाती गुरु गोरक्षनाथ जो पूर्ण ब्रह्म करतार
संकट मोचन नाथ का जो सुमारे चित विचार ,जाती गुरु गोरक्षनाथ ,मेरा करो विस्तार ,

संसार सर्व दुख क्षय कराय , सत्व गुण आत्मा गुण दाय काय ,मनो वंचित फल प्रदयकय
ॐ नमो सिद्ध सिद्धेश श्वाराया ,ॐ सिद्ध शिव गोरक्ष नाथाय नमः ।

मृग स्थली स्थली पुण्यः भालं नेपाल मंडले यत्र गोरक्ष नाथेन मेघ माला सनी कृता

श्री ॐ गो गोरक्ष नाथाय विधमाहे शुन्य पुत्राय धी माहि तन्नो गोरक्ष निरंजन प्रचोदयात ,

MahaYogi Baba gorakshanath

ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,

आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर

निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !

धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर

कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपार

सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !

सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,

छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !

साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,

अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !

देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,

ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !

चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,

क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !

गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!

जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !

भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !

आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !

जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !

नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !

नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,

भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !

एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,

करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !

गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,

घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !

लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,

बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !

"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,

जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट

MahaYogi Baba gorakshanath

ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,

आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर

निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !

धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर

कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपार

सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !

सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,

छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !

साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,

अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !

देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,

ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !

चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,

क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !

गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!

जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !

भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !

आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !

जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !

नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !

नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,

भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !

एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,

करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !

गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,

घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !

लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,

बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !

"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,

जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट