गोरक्षा स्तवनं
आत्मा खलु विश्व मुलं,ॐ क्रुन्वान्तो विश्वमार्यम
गोरक्षा बालम,गुरु शिष्य पालम,शेष हिमालम,शशि खंड भालं,,,१
कलाय्स्य कलम,जित जन्म जालं,वंदे जटा लम ,जग्दाब्जा नालं........
गोरक्षनाथ भवरुपा भवभ्दिपोत,भक्तार्तिनाशन विभो करुनैक्मुरते,
त्वात्पद पद्मा मकरंद मधु व्रतोहम ,तापं मदीय मनसो हर देव सेः...
गोरक्षनाथ मई चेत करुनात वेद्रूक, दिन स्वदिय चरणौ शरणम प्रपद्ये.
नश्येंदा वश्य मैथ मन संवेदना में, सिद्धि ब्रजेंनी खिल ब्रह्मा विधिर्ही लोके...
गोरक्षनाथ रजसा चरण स्तिथेन पूतन शिरो भवति भक्त जनस्य नूनं ...
तवा दर्शन हरति तस्य समस्त चिंता, त्वत सेवनं हरति पापा पिशाच पुज्जम
हे नाथ ममापि विलोकय दीनबन्धो संताप तप्त हृदय कृपण क्षनेस्मिन
पदनाते शिरसी में वरदात्मा हस्त काम निधेहि गुरूदेओ,भवानुकुलाह
दोशाकरोस्मी भाग्वान्न्नुकाम्पनिया निर्दोषता न सुलभा जग्तितालेस्मिन
दोशाकरेपी विमल दुति संयुतेपी की लांचन मनुज दृष्टी patha न यती
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
सोमवार, 15 सितंबर 2008
गोरक्षनाथ मै तो एक निरंजन ध्याऊ ........
गुरूजी मै तो एक निरंजन ध्याऊ..........
दुःख ना जणू दरद न जणू, न कोई बैद बुलाऊ..
सदगुर बैद मिले अविनाशी,बाहू को नदी बताऊ............१
गंगा न जाऊ जमुना न जाऊ न कियो तीरथ न्हाऊ
अडसत तीरथ है घट भीतर बाहुमो मनमल धू........२
फुल न तोडू ,फ़तर न फोडू , न कोई झाड़ सताऊ
बनबन की मै लकड़ी न फोडू, न कोई देवल जाऊ..............३
कहे मछिंदर गोरख बोले,जोत में जोत मिलाऊ
सदगुरु जी शरण गए से आवागमन मतु.............४
दुःख ना जणू दरद न जणू, न कोई बैद बुलाऊ..
सदगुर बैद मिले अविनाशी,बाहू को नदी बताऊ............१
गंगा न जाऊ जमुना न जाऊ न कियो तीरथ न्हाऊ
अडसत तीरथ है घट भीतर बाहुमो मनमल धू........२
फुल न तोडू ,फ़तर न फोडू , न कोई झाड़ सताऊ
बनबन की मै लकड़ी न फोडू, न कोई देवल जाऊ..............३
कहे मछिंदर गोरख बोले,जोत में जोत मिलाऊ
सदगुरु जी शरण गए से आवागमन मतु.............४
मचिंदर नाथ-तोबी कच्चा बे कच्चा .........
तोबी कच्चा बी कच्चा, नहीं गुरु का बच्चा
दुनिया तजकर खाक लगायी,जाकर बैठा बन्मो,
खेचरी मुद्रा बज्रासन पर, ध्यान धरत है मनमो..........१
गुप्ता होवे परगट होवे, जावे मथुरा कशी ,प्राण किकले,
सिद्ध भय है, सत्य लोग का वाशी...................................२
तीरथ करकर उमर खोई,जोग जुगात्मो साडी,
धन ,कमिनिको नज़र न लावे, जोग कमाया भरी...................३
कुण्डलिनी को खूब चढावे ब्रह्मोरंध्रामो जावे,
चलता है पानी के ऊपर ,मुख बोले सो होवे..........................४
शत्रोमे कछु रही न बाकि,पुरा ज्ञान कमाया,
वेड विधि का मार्ग चलकर,तन का लाकर किया...........................५
कहे मछिंदर सुन रे गोरख,तीनो ऊपर जन, किरपा भाई,
जब सद्गुरु जी की, आप आप को चिह्न.....................................
सोही सच्चा बे सच्चा, ओही गुरु का बच्चा.............................
दुनिया तजकर खाक लगायी,जाकर बैठा बन्मो,
खेचरी मुद्रा बज्रासन पर, ध्यान धरत है मनमो..........१
गुप्ता होवे परगट होवे, जावे मथुरा कशी ,प्राण किकले,
सिद्ध भय है, सत्य लोग का वाशी...................................२
तीरथ करकर उमर खोई,जोग जुगात्मो साडी,
धन ,कमिनिको नज़र न लावे, जोग कमाया भरी...................३
कुण्डलिनी को खूब चढावे ब्रह्मोरंध्रामो जावे,
चलता है पानी के ऊपर ,मुख बोले सो होवे..........................४
शत्रोमे कछु रही न बाकि,पुरा ज्ञान कमाया,
वेड विधि का मार्ग चलकर,तन का लाकर किया...........................५
कहे मछिंदर सुन रे गोरख,तीनो ऊपर जन, किरपा भाई,
जब सद्गुरु जी की, आप आप को चिह्न.....................................
सोही सच्चा बे सच्चा, ओही गुरु का बच्चा.............................
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