गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009
गोरख बनी
ब्रह्म अगनी पहिरवा चिरं ।
निर्झर झरने अमृत झरिया
उं मन हुवा थिरंं॥
---------------------------
भनंत गोरखनाथ काया गढ़ लेवा
काया गढ़ लेवा, जुगी जुगी जीव ॥
---------------------------
यह तन साँच , साँच का घरवा।
रुध्र पलट अमीरस भरवा ।।
---------------------------
कन्दर्प रूप काया का मंडन अविरथा की उलिंचे।
गोरख कहे सुनो रे भोंदू अरंड अभी कट सींचो ॥
---------------------------
अवधू आहार तोड़ो, निद्रा मोडो कबहु न होएबो रोगी।
छटे छमाहे काया पलटीबा नाग बंग बनस्पति जोगी ॥
---------------------------
अव्धो सहस्त्र नदी पवन चलेगा कोटि झमका नादं ।
बहत्तर चंदा बैसंख्या किरण प्रगति जब आदन ॥
---------------------------
अथ गोरक्ष उपनिषत ||
अथ गोरक्ष उपनिषत ||
श्री नाथ परमानंदा है विश्वगुरु है निरा ~नजन है
विश्वव्यापका है । महासिद्धना के लक्ष्य है तीन परत इ हमारे आदेशा
होहु || इहां आगे अव् अताराना || एक समाई विमला नाम महादेवी की ।न्चितु
विस्मय जुकता भा / ईश्रीमंमाहा गोरक्षनाथा तिनासौम्पूछातु है |
ताको विस्मय दूर करीबी मैं तात्पर्य है लोकाना को मोक्ष करीबी हेतु
क्र^इपालू तासौं महाजोगा विद्या प्रगत करिबे को तीन के इसे श्री नाथ
स्वमुखा सम उपनिश्हद प्रगत अरे है| गो कहिये इन्द्रिय तिनकी
अंतर्यामियासोम रक्षा करे है भाव भूताना की, तासों गोरक्षनाथा
नाम है| अरु जोग को जे~नाना करावी है या वास्ते उपनिश्हद नाम है|
यातेम ही गोराक्शोपनिश्हद महासिद्धानामेम प्रसिद्ध हैं| इहां आगे
विमला उवाचा|| मूलाको अर्थ|| जासमै महाशुन्य था आकाशादी
महापा.न्चाभूता अरु तीनही प्~न्चाभूतानामय ईश्वर अरु जीवादी को/ई
प्रकार न थे ताबा या सर^इश्हती काउ करता कौन था| तात्पर्य ऐ है
की नाना प्रकार की सर^इश्हती होया वाई मई प्रथमा करता महाभूता है
अरु वेही शुद्ध सातवा.नशाले के ईश्वर भए वेही मलिना सत्व करी
जीव भये तौएतौ साक्षात कर्त्ता न भय ताबा जिससमै ऐ न थे ताबा
कोई अनिर्वचनीय पदार्थ था|| सो कर्त्ता सो कर्त्ता सो कर्त्ता कौन
भयो इसे प्रश्न पारा| श्री महागोराक्षनाथा उत्तर कराइ है श्री
गोरक्षनाथा उवाचा| आदि अनादी महानान्दरूपा निराकार साकार
वर्जित अचिन्त्य कोई पदार्थ था टा.नकू हे देवी मुख्या करता जानिये
क्योम की निराकार करता होया तौ आकार इच्छा धारिबे मैं विरुद्ध
आवे है| साकार करता होया तौ साकार को व्यापकता नहीं है
यहाँ विरुद्ध आवै है| तातैं करता ओही है जो द्वैताद्वैता रहित
अनिर्वचनीय नाथा सदानान्दा स्वरूप सोही आजे कम वक्श्यमाना है|
इह मार्ग मई देवता कोना है यहाँ आशा.नका वारने कहै है| अद्वैतो
परी म्माहानान्दा देवता| अद्वैत ऊपर भयो ताबा द्वैत ऊपर तौ
स्वतः भयो|| इह प्रकार अहम् कर्त्ता सिद्ध तुम जाना ~न्छः करता
अपनी इच्छा शक्ति प्रगत करी| टाकरी पीछे पिंडा ब्रह्मांडा
प्रगत भए तिनामै अव्यक्त निर्गुण स्वरूप सोम व्यापक भयो| व्यक्त
आनंदा विग्रह स्वरूप सोम विहार करता भयौ पीछे ज्योही मैं एक
स्वरूप सोम नवा स्वरूप होतु भयौ \-\- टाइम सत्यानाथा, अनन्तर
संतोश्हनाथा विचित्र विश्व के गुना तीन सोम असा.नगा रहता भयौ, यातेम
सा.न्तोश्हनाथा भयौ| आगे कूर्मनाथा आकाशा रूप श्री आदिनाथ|
कूर्मशाब्दा तै पाताला तारे अधोभूमि ताकौ नाम कूर्मनाथा| बीचा के
सर्वनाथा पर^इथ्वीमंदाला के नाथ औरप्रकारा सप्तानाथा भए|
अनन्तर मत्स्येंद्रनाथा के पुनः पुत्र श्री \-\- जगाता की उत्पत्ति के हेता
लाये माया काउ लावण्या टा.नसौ असा.नगा जोगाधार्मा \-\- द्रश्ह्ता रमण
कियौ है आत्मरूपा सम सर्व जीवन मैं| तट शिष्या गोरखानाथा|
{\रम ``}गो" कहिये वाक्{}शब्द ब्रह्म ताकी\, {\रम ``}रा" कहिये
रक्षा कराइ\, {\रम ``}क्ष" कहिये क्षय करी रहित अक्षय ब्रह्म
इसे श्रीगोराक्षनाथा चतुर्थारूपा भयो और प्रकार नवा स्वरूप
भयो तामे एक निरंतारानाथा कम किहा मार्ग करी पायौ जातु| ताकौ
कारण कहतु हैं| दोय मार्ग विश्व मई प्रगत कियो है कुला अरु अकुला|
कुला मार्ग शक्ति मार्गः, अकुला मार्ग अखान्दनाथा चैतन्य मार्ग
तंत्र अ.नसा जोग तिनामै की.न्चिता प्रपा~नचा की|| एवं|| या रीता मई
द्वैताद्वैता रहित नाथ स्वरूप तै व्यवहार के हेतु अद्वैत
निर्गुनानाथा भयौ अद्वैत तै द्वैत रूप आनंदा विग्रहात्मा नाथ
भयौ तामै ही मो एक टाइम मैं विशेस्छा व्यवहार के हेतु नवा
स्वरूप भयौ तीन नवा स्वरूप काउ निरूपण| श्री कहिये अखंडा
शोभा सा.नजुकता गुरु कहिये सर्वोपदेश्ह्ता आदि कहिये इन वक्श्यमाना
नवा स्वरूप मैं प्रथमा नाथ {\रम ``} ना" करी नादा ब्रह्म को
बोधा करावे, {\रम ``} था" करी थापना किए है त्रय जगाता जीता एसो
श्री आदिनाथ स्वरूप| अनन्तर मत्स्येन्द्र नाथ| टा पाछा तट पुत्र
तट शिष्या उदयानाथा श्री आदिनाथ टाइम जोग शास्त्र प्रगत कियौ
द्वाही| योग काउ उदय जाहरी महासिद्ध निकारी बहुत भयो आतैम
उदयानाथा नाम प्रसिद्ध भयो| अनन्तर दंदनाथा ताही जोग के
उपदेशा तै खंदाना कियो है| काला दंदालोकानी काउ ययाती
दंदनाथा भयौ||
आगे मत्स्यनाथा असत्य माया स्वरूपमाया काला ताको खा.नदना
करा महासत्य टाइम शोभता भयौ आना निर्गुनातीता ब्रह्मनाथा ताकुम
जानैयातई आदि ब्राह्मण सूक्ष्मवेदी| ब्राह्मण वेदा पाठी होतु है
र^इगा यजु सामा इत्यादि करा इनके सूक्ष्म वेदी खेचरी मुद्रा अन्तरीय
खेचरी मुद्रा बाह्यावेश्हरी करना मुद्रा मुद्राशक्ति की निशक्ति
करबी सिद्धासिद्धानता पद्धति के लेखा प्रमाण| अनंता माथा मंदिर
शिवा शक्ति नाथ अरु ईच्छा शिवा तन्तुरियम जज~नोपवीता शिवा तं तू
आत्मा तं तू जज~न जोग जग्य उपवीत श्यामा उर्निमासुउत्र| ब्रह्म
पदाचारानाम ब्रह्मचर्य शान्ति सा.न्ग्रहनाम गर^इहस्थाश्रमम
अध्यात्मा वासं वानाप्रस्थं सा सर्वेच्छा विन्यासम सा.न्न्यासम आदि
ब्राह्मण कहिवे मई चतुर
काउ समावेसा जामी होया है ययाती ही अत्याश्रमी आश्रमाना कोहू गुरु
भयौ| सो विशेस्छा करी शिष्या पद्धति मई कह्यो ही है| तात्पर्य
भेदाभेदा रहित अचिन्त्य वासना जुकता जीव होया ते तौ कुला मार्ग
करियौ मई आवतु है अरु समस्त वासना रहित भए है अन्तःकरण
जिनके, ऐसी जीव जोग भजन मई आवतु है आइसो मार्गाना मई अकुला मार्ग
है| और शास्त्र वाक् जालाकारा उपदेशा करतु है| मेरो सा.न्केता
शास्त्र है पतो शुन्य कहिये नाथ सोही सा.न्केता है इह मार्ग में
देवता कोना है यहाँ आशा.नका वारण कहै है ईश्वर सा.न्ताना|
सा.न्ताना दोय प्रकार काउ नादा रूप विन्दु, विन्दु नादा रूप| शिष्या
विन्दु रूप, पूत्र नाथ रूप नादा शक्तिरूपा विन्दु नादरूपा करी भए|
शिष्या सौ प्रथमा कहै नवनाथ स्वरूप शक्ति विन्दु रूप पारा शिवा
सोही ईश्वर नाम करा मेरो सा.न्ताना है| टा करी विश्व की प्रवर^इत्ती
करतु है| जोग माता अश्ह्ताश्न्गा जोग मुख्या करा शह.न्दागा जोग अकुला कहने
सो अवधूता जोग जोग माता सम साधना अश्ह्ताश्न्गा जोग| आदि ब्राह्मणा
ब्राह्मण क्षत्री विश्व शूद्रच्यारा
तिनामै ब्राह्मण
सगुण ब्रह्म द्वारे निर्गुण ब्रह्म करिजाने सो ब्राह्मण ऐ जोगीश्वारा
सगुनानाथा गम्य पदार्थ| आनंदा विग्रहात्मनाथा उपदेश्ह्ता उपास्य
रूप अत्याश्रमी गुरु अवधूता जोग साधना मुमुक्षु अधिकारी बंधा
मोक्ष रहित कोइका अनिर्वचनीय मोक्ष मोक्ष आइसो आ ग्रन्थ मई निरूपण
है सो जो कोई पढ़े पधावाई जाको अनंता अचिन्त्य पहला है|