गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
शनिवार, 14 फ़रवरी 2009
इति श्री नवनाथानी कथितानी अथ श्री चतुरशीतिसिद्धाना स्तोत्रं
ॐ कार रूपों १ खिल मंत्र राजः सोऽहं २ धरित्र्य दिकुमारिकेह ३ कलांग सिद्धः ४ कलि दोष हर्ता श्री सिद्ध राजन सततं नमामि ॥ १॥ गौरांग ५ सिद्धो गन राग वरिष्ठो गोरक्ष ६ सिद्धो धाविघात दक्ष चौरंगी ७ सिद्धो न धी चर्पटी ८ स्च श्री सिद्ध राजन सततं नमामि ॥ २॥ शृंगी ९ सुसिद्धो प्यचल १० स्च मीनो ११ मत्सेंद्र १२ सिद्धो खिल शास्त्र वेत्ता सजायी १३ सिद्ध कपिल १४ कनेरी १५ श्री सिद्ध राजन सततं नमामि ॥ ३॥ श्री कन्थादी १६ कोमल वग्विलासी श्री ब्रह्म नंदा १७ परमात्मा रूपा गोविंदा आई १८ स्त्री दशर्चितस्च श्री सिद्ध राजन सततं नमामि ॥ ४।। श्री सिद्ध रजो ह्याचले १९ श्वरों वै श्री बाल शब्दों गुण हाईयुक्तः २० श्री वंकनाठो २१ वर मुक्तिवार्ता श्री सिद्ध राजन सततं नमामि ॥ ५॥
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं
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