गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
सोमवार, 19 जनवरी 2009
महा योगी बाबा गोरखनाथ
महा योगी बाबा गोरखनाथ ॥
ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,
आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर
निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !
धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर
कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपार
सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !
सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,
छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !
साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,
अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !
देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,
ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !
चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,
क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !
गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!
जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !
भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !
आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !
जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !
नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !
नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,
भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !
एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,
करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !
गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,
घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !
लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,
बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !
"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,
जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट!"
(-- पद्मावत )
रवि धुरंधर
मेरा नाम रवि धुरंधर है ...मै उन तमाम दोस्तों का शुक्र गुजर हूँ जिन्होंने मुझे शिव गोरक्ष के बारे में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
नाथ पंथ में मेरी रूचि तब से शुरू हुई जब मैं अपना पदवी अभ्यासक्रम शुरू किया था ।
एक दिन सदगुरूजी कानिफनाथ जी ने दृष्टांत देकर अपने पास बुलाया और मैं उन्ही का होकर रहा गया ...
कानिफनाथ जी की संजीवन समाधी तीर्थ क्षेत्र मढ़ी स्तिथ है ...रंगपंचमी उनका समाधी दिवस है ..उस दिन मढ़ी में यात्रा होती है...वह गुढी पडवा तक चलती है ..गुढी पडवा को स्वामी माया मछिन्द्र नाथ जी को स्नान कराया जाता है ..और नई गलफ चढाई जाती है ॥ रंगपंचमी को मढ़ी में रहना बहोत भाग्य की बात होती है ॥ सब नाथ पंथी लोग दर्शन के लिया देशभर से आते है ॥
नाथ पंथ के मुख्य माया मच्चिन्द्र नाथ भले ही रहे हो लेकिन , शिव गोरक्ष ही मुख्य प्रवर्तक रहे है ॥
सम्पुर्ण विश्व में उनका भ्रमण रहा है॥ नाथ पंथ का जन्म बौध धर्मं से हुआ है ..मचिन्द्र नाथ बंगाल प्रान्त से मध्य प्रदेश होकर महाराष्ट्र में आए और उपदेश लोगों को देते हुए मायाम्बा में समधिस्ता हुए ।
नवनाथ भक्तिसर पढ़े तो हम जन सकते है की ॥
मठित राहिला ॥ कनिफा जाती ॥ उपरी मच्चिन्द्रसी माय बाप म्हणती
कानिफनाथ महाराज जी के समाधी के बिल्कुल सामने की पहाड़ पर मचिन्द्रनाथ समधिस्ता है ।
और दोनों समाधी के बिल्कुल बिच में एक ऐसी जगह है जहा पर शिव गोरक्ष जी का तपस्चर्या स्थल है ।
मैं सब लोगो से गुजारिश करता हूँ की आप सभी समाधी दर्शन के लिया रंगपंचमी को जरुर जाए .एक अलग ही अनुभव प्राप्त होगा ॥ अलख निरंजन घोष कान में सदा के लिया गूंजता रहेगा ॥ जो भी मढ़ी जाता है नाथ पंथी बनकर रह जाता है॥ नाथ जी का आशीर्वाद हमेशा के लिया साथ रहता है ॥
मढ़ी जाने के लिए अहमदनगर जाना होता है ..वहा से मढ़ी के लिए बस होती है। अथवा नगर पाथर्डी बस पकड़कर निवडुंग पता पर उतर जाया और वहा से ऑटो करके भी मढ़ी जाया जा सकता है। एक बार जाकर अनुभव ले ॥
कानिफनाथ जी के गुरु सदगुरु जलिंदर नाथ जी यावल वाडी स्तिथ है ॥ जो मढ़ी से ७० किलोमीटर है ॥
मढ़ी जाकर आप सदगुरु शंकर महाराज के वृधेश्वर में जा सकते है॥ इसे नाथ पंथ की गंगोत्री कहा जाता है ॥ एस जगह में गहिनीनाथ जी का तपस्चर्या स्थल है ।
एक तरह से अहमदनगर नाथपंथ की करमा भूमि रही है॥
मैं आप सबसे गुजारिश करता हूँ की आपके पास कोई भी नाथ पंथ पर सामग्री उप्लभ्द हो तो जरूर बताये॥
मैं जीवन भर आपका उप कृत रहूँगा ॥
धन्यवाद्
आपका
रवि धुरंधर
बदलापुर
९३२४१०७८०६