कपिल नाथ जी सनक नाथ जी लंक्नाथ रवें जी सनातन नाथ जी विचार नाथ जी / भ्रिथारी नाथ जी चक्रनाथ जी नरमी नाथ जी रत्तन नाथ जी श्रृंगेरी नाथ जी सनंदन नाथ जी निवृति नाथ जी सनत कुमार जी ज्वालेंद्र नाथ जी सरस्वती नाथ जी ब्राह्मी नाथ जी प्रभुदेव नाथ जी कनकी नाथ जी धुन्धकर नाथ जी नारद देव नाथ जी मंजू नाथ जी मानसी नाथ जी वीर नाथ जी हरिते नाथ जी नागार्जुन नाथ जी भुस्कई नाथ जी मदर नाथ जी गाहिनी नाथ जी भूचर नाथ जी हम्ब्ब नाथ जी वक्र नाथ जी चर्पट नाथ जी बिलेश्याँ नाथ जी कनिपा नाथ जी बिर्बुंक नाथ जी ज्ञानेश्वर नाथ जी तारा नाथ जी सुरानंद नाथ जी सिद्ध बुध नाथ जी भागे नाथ जी पीपल नाथ जी चंद्र नाथ जी भद्र नाथ जी एक नाथ जी मानिक नाथ जी | गेहेल्लेअराव नाथ जी काया नाथ जी बाबा मस्त नाथ जी यज्यावालाक्य नाथ जी गौर नाथ जी तिन्तिनी नाथ जी दया नाथ जी हवाई नाथ जी दरिया नाथ जी खेचर नाथ जी घोड़ा कोलिपा नाथ जी संजी नाथ जी सुखदेव नाथ जी अघोअद नाथ जी देव नाथ जी प्रकाश नाथ जी कोर्ट नाथ जी बालक नाथ जी बाल्गुँदै नाथ जी शबर नाथ जी विरूपाक्ष नाथ जी मल्लिका नाथ जी गोपाल नाथ जी लघाई नाथ जी अलालम नाथ जी सिद्ध पढ़ नाथ जी आडबंग नाथ जी गौरव नाथ जी धीर नाथ जी सहिरोबा नाथ जी प्रोद्ध नाथ जी गरीब नाथ जी काल नाथ जी धरम नाथ जी मेरु नाथ जी सिद्धासन नाथ जी सूरत नाथ जी मर्कंदय नाथ जी मीन नाथ जी काक्चंदी नाथ जी भागे नाथ जी पीपल नाथ जी चंद्र नाथ जी भद्र नाथ जी एक नाथ जी | मानिक नाथ जी गेहेल्लेअराव नाथ जी काया नाथ जी बाबा मस्त नाथ जी यज्यावालाक्य नाथ जी गौर नाथ जी तिन्तिनी नाथ जी दया नाथ जी हवाई नाथ जी दरिया नाथ जी खेचर नाथ जी घोड़ा कोलिपा नाथ जी संजी नाथ जी सुखदेव नाथ जी अघोअद नाथ जी देव नाथ जी प्रकाश नाथ जी कोर्ट नाथ जी बालक नाथ जी बाल्गुँदै नाथ जी शबर नाथ जी विरूपाक्ष नाथ जी मल्लिका नाथ जी गोपाल नाथ जी लघाई नाथ जी अलालम नाथ जी सिद्ध पढ़ नाथ जी आडबंग नाथ जी गौरव नाथ जी धीर नाथ जी सहिरोबा नाथ जी प्रोद्ध नाथ जी गरीब नाथ जी काल नाथ जी धरम नाथ जी मेरु नाथ जी सिद्धासन नाथ जी सूरत नाथ जी मर्कंदय नाथ जी मीन नाथ जी काक्चंदी नाथ जे |
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
शनिवार, 31 जनवरी 2009
८४ सिद्धनाथ
नवनाथ-शाबर-मन्त्र
नवनाथ-शाबर-मन्त्र
“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”
विधिः- पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
विशेषः-’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।
नवनाथ-स्तुति
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”
विधिः- प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है।
नवनाथ शाबर मन्त्र
नव नाथ स्मरण
नव-नाथ-स्मरण
“आदि-नाथ ओ स्वरूप, उदय-नाथ उमा-माहि-रूप. जल-रूपी ब्रह्म सैट-नाथ, रवि-रूप विष्णु संतोष-नाथ. हस्ती-रूप गणेश भतीजी, ताकू कन्थाद-नाथ कही जय. माया-रूपी मछिंदर-नाथ, चाँद-रूप चौरंग्गी-नाथ. शेष-रूपअचम्भे-नाथ, वायु-रूपी गुरु गोरख-नाथ. घाट-घाट-व्यापक घाट का राव, अमी महा-रस स्त्रावती खाव. ॐ नमोनव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश. आदि-नाथ आदि-पुरूष, शिव गोरख आदेश. ॐ श्री नव-नाथाय नमः..”
विधिः- उक्त स्मरण का पथ प्रतिदिन करे. इससे पापों का क्षय होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है. सुख-संपत्ति-वैभव सेसाधक परिपूर्ण हो जटा है. २१ दिनों तक २१ पथ कराने से इसकी सिद्धि होती है.
जय नवनाथ
जय हो जय हो गुरु गोरख नाथ
जय जय श्री जालंधर नाथ
जय हो गुरु नागेश नाथ
जय हो जय हो गुरु भर्ती नाथ
जय हो जय गुरु चरपति नाथ
जय हो जय गुरु कनिप नाथ
जय जय गुरु गहनी नाथ
जय हो जय गुरु रेवन नाथ
सब जग बोले जय नव नाथ
गोरक्षनाथ संकट मोचन स्तोत्र
ताहि समे सुख सिद्धन को भयो, नाती शिव गोरख नाम उचारो॥
भेष भगवन के करी विनती तब अनुपन शिला पे ज्ञान विचारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य युग मे भये कामधेनु गौ तब जती गोरखनाथ को भयो प्रचारों।
आदिनाथ वरदान दियो तब , गौतम ऋषि से शब्द उचारो॥
त्रिम्बक क्षेत्र मे स्थान कियो तब गोरक्ष गुफा का नाम उचारो ।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य वादी भये हरिश्चंद्र शिष्य तब, शुन्य शिखर से भयो जयकारों।
गोदावरी का क्षेत्र पे प्रभु ने , हर हर गंगा शब्द उचारो।
यदि शिव गोरक्ष जाप जपे , शिवयोगी भये परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
अदि शक्ति से संवाद भयो जब , माया मत्सेंद्र नाथ भयो अवतारों।
ताहि समय प्रभु नाथ मत्सेंद्र, सिंहल द्वीप को जाय सुधारो ।
राज्य योग मे ब्रह्म लगायो तब, नाद बंद को भयो प्रचारों।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
आन ज्वाला जी किन तपस्या , तब ज्वाला देवी ने शब्द उचारो।
ले जती गोरक्षनाथ को नाम तब, गोरख डिब्बी को नाम पुकारो॥
शिष्य भय जब मोरध्वज राजा ,तब गोरक्षापुर मे जाय सिधारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ज्ञान दियो जब नव नाथों को , त्रेता युग को भयो प्रचारों।
योग लियो रामचंद्र जी ने जब, शिव शिव गोरक्ष नाम उचारो ॥
नाथ जी ने वरदान दिया तब, बद्रीनाथ जी नाम पुकारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
गोरक्ष मढ़ी पे तपस्चर्या किन्ही तब, द्वापर युग को भयो प्रचारों।
कृष्ण जी को उपदेश दियो तब, ऋषि मुनि भये परम सुखारो॥
पाल भूपाल के पालनते शिव , मोल हिमाल भयो उजियारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ऋषि मुनि से संवाद भयो जब , युग कलियुग को भयो प्रचारों।
कार्य मे सही किया जब जब राजा भरतुहारी को दुःख निवारो,
ले योग शिष्य भय जब राजा, रानी पिंगला को संकट तारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
मैनावती रानी ने स्तुति की जब कुवा पे जाके शब्द उचारो।
राजा गोपीचंद शिष्य भयो तब, नाथ जालंधर के संकट तारो। ।
नवनाथ चौरासी सिद्धो मे , भगत पूरण भयो परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
दोहा :- नव नाथो मे नाथ है , आदिनाथ अवतार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जो , पूर्ण ब्रह्म करतार॥
संकट -मोचन नाथ का , सुमरे चित्त विचार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जी मेरा करो निस्तार ॥
अल्लख निरंजन ॥ आदेश ॥
ॐ र्हीम र्हाम रक्ष रक्ष शिव गोरक्ष ॥