सोमवार, 15 सितंबर 2008

गोरक्षनाथ मै तो एक निरंजन ध्याऊ ........

गुरूजी मै तो एक निरंजन ध्याऊ..........

दुःख ना जणू दरद न जणू, न कोई बैद बुलाऊ..

सदगुर बैद मिले अविनाशी,बाहू को नदी बताऊ............१
गंगा न जाऊ जमुना न जाऊ न कियो तीरथ न्हाऊ
अडसत तीरथ है घट भीतर बाहुमो मनमल धू........२
फुल न तोडू ,फ़तर न फोडू , न कोई झाड़ सताऊ
बनबन की मै लकड़ी न फोडू, न कोई देवल जाऊ..............३
कहे मछिंदर गोरख बोले,जोत में जोत मिलाऊ
सदगुरु जी शरण गए से आवागमन मतु.............४

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें