गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
शनिवार, 13 सितंबर 2008
गोरक्षा स्मरणं
नाकरोनादी रुपंच ठाकर स्थापय्ते सदा
भुवनत्रया में वैक श्री गोरक्ष नमोस्तुते,
न ब्रह्म विष्णु रुद्रो न सुरपति सुरा
नैव पृथ्वी न च चापो ------------१
नै वाग्नी नर्पी वायु , न च गगन तल
नो दिशों नैव कालं---------------२
नो वेदा नैव यध्न्या न च रवि शशिनो ,
नो विधि नैव कल्पा,--------------३
स्व ज्योति सत्य मेक जयति तव पद,
सचिदानान्दा मूर्ते----------------४
ॐ शान्ति ,अलख , ॐ शिव गोरक्ष ...........................
!! ॐ शिव गोरक्ष यह मंत्र है सर्व सुखो का सार ,जपो बैठो एकांत में ,तन की सुधि बिसार..........................!!
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