कपिल नाथ जी सनक नाथ जी लंक्नाथ रवें जी सनातन नाथ जी विचार नाथ जी / भ्रिथारी नाथ जी चक्रनाथ जी नरमी नाथ जी रत्तन नाथ जी श्रृंगेरी नाथ जी सनंदन नाथ जी निवृति नाथ जी सनत कुमार जी ज्वालेंद्र नाथ जी सरस्वती नाथ जी ब्राह्मी नाथ जी प्रभुदेव नाथ जी कनकी नाथ जी धुन्धकर नाथ जी नारद देव नाथ जी मंजू नाथ जी मानसी नाथ जी वीर नाथ जी हरिते नाथ जी नागार्जुन नाथ जी भुस्कई नाथ जी मदर नाथ जी गाहिनी नाथ जी भूचर नाथ जी हम्ब्ब नाथ जी वक्र नाथ जी चर्पट नाथ जी बिलेश्याँ नाथ जी कनिपा नाथ जी बिर्बुंक नाथ जी ज्ञानेश्वर नाथ जी तारा नाथ जी सुरानंद नाथ जी सिद्ध बुध नाथ जी भागे नाथ जी पीपल नाथ जी चंद्र नाथ जी भद्र नाथ जी एक नाथ जी मानिक नाथ जी | गेहेल्लेअराव नाथ जी काया नाथ जी बाबा मस्त नाथ जी यज्यावालाक्य नाथ जी गौर नाथ जी तिन्तिनी नाथ जी दया नाथ जी हवाई नाथ जी दरिया नाथ जी खेचर नाथ जी घोड़ा कोलिपा नाथ जी संजी नाथ जी सुखदेव नाथ जी अघोअद नाथ जी देव नाथ जी प्रकाश नाथ जी कोर्ट नाथ जी बालक नाथ जी बाल्गुँदै नाथ जी शबर नाथ जी विरूपाक्ष नाथ जी मल्लिका नाथ जी गोपाल नाथ जी लघाई नाथ जी अलालम नाथ जी सिद्ध पढ़ नाथ जी आडबंग नाथ जी गौरव नाथ जी धीर नाथ जी सहिरोबा नाथ जी प्रोद्ध नाथ जी गरीब नाथ जी काल नाथ जी धरम नाथ जी मेरु नाथ जी सिद्धासन नाथ जी सूरत नाथ जी मर्कंदय नाथ जी मीन नाथ जी काक्चंदी नाथ जी भागे नाथ जी पीपल नाथ जी चंद्र नाथ जी भद्र नाथ जी एक नाथ जी | मानिक नाथ जी गेहेल्लेअराव नाथ जी काया नाथ जी बाबा मस्त नाथ जी यज्यावालाक्य नाथ जी गौर नाथ जी तिन्तिनी नाथ जी दया नाथ जी हवाई नाथ जी दरिया नाथ जी खेचर नाथ जी घोड़ा कोलिपा नाथ जी संजी नाथ जी सुखदेव नाथ जी अघोअद नाथ जी देव नाथ जी प्रकाश नाथ जी कोर्ट नाथ जी बालक नाथ जी बाल्गुँदै नाथ जी शबर नाथ जी विरूपाक्ष नाथ जी मल्लिका नाथ जी गोपाल नाथ जी लघाई नाथ जी अलालम नाथ जी सिद्ध पढ़ नाथ जी आडबंग नाथ जी गौरव नाथ जी धीर नाथ जी सहिरोबा नाथ जी प्रोद्ध नाथ जी गरीब नाथ जी काल नाथ जी धरम नाथ जी मेरु नाथ जी सिद्धासन नाथ जी सूरत नाथ जी मर्कंदय नाथ जी मीन नाथ जी काक्चंदी नाथ जे |
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
शनिवार, 31 जनवरी 2009
८४ सिद्धनाथ
नवनाथ-शाबर-मन्त्र
नवनाथ-शाबर-मन्त्र
“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”
विधिः- पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
विशेषः-’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।
नवनाथ-स्तुति
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”
विधिः- प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है।
नवनाथ शाबर मन्त्र
नव नाथ स्मरण
नव-नाथ-स्मरण
“आदि-नाथ ओ स्वरूप, उदय-नाथ उमा-माहि-रूप. जल-रूपी ब्रह्म सैट-नाथ, रवि-रूप विष्णु संतोष-नाथ. हस्ती-रूप गणेश भतीजी, ताकू कन्थाद-नाथ कही जय. माया-रूपी मछिंदर-नाथ, चाँद-रूप चौरंग्गी-नाथ. शेष-रूपअचम्भे-नाथ, वायु-रूपी गुरु गोरख-नाथ. घाट-घाट-व्यापक घाट का राव, अमी महा-रस स्त्रावती खाव. ॐ नमोनव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश. आदि-नाथ आदि-पुरूष, शिव गोरख आदेश. ॐ श्री नव-नाथाय नमः..”
विधिः- उक्त स्मरण का पथ प्रतिदिन करे. इससे पापों का क्षय होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है. सुख-संपत्ति-वैभव सेसाधक परिपूर्ण हो जटा है. २१ दिनों तक २१ पथ कराने से इसकी सिद्धि होती है.
जय नवनाथ
जय हो जय हो गुरु गोरख नाथ
जय जय श्री जालंधर नाथ
जय हो गुरु नागेश नाथ
जय हो जय हो गुरु भर्ती नाथ
जय हो जय गुरु चरपति नाथ
जय हो जय गुरु कनिप नाथ
जय जय गुरु गहनी नाथ
जय हो जय गुरु रेवन नाथ
सब जग बोले जय नव नाथ
गोरक्षनाथ संकट मोचन स्तोत्र
ताहि समे सुख सिद्धन को भयो, नाती शिव गोरख नाम उचारो॥
भेष भगवन के करी विनती तब अनुपन शिला पे ज्ञान विचारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य युग मे भये कामधेनु गौ तब जती गोरखनाथ को भयो प्रचारों।
आदिनाथ वरदान दियो तब , गौतम ऋषि से शब्द उचारो॥
त्रिम्बक क्षेत्र मे स्थान कियो तब गोरक्ष गुफा का नाम उचारो ।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य वादी भये हरिश्चंद्र शिष्य तब, शुन्य शिखर से भयो जयकारों।
गोदावरी का क्षेत्र पे प्रभु ने , हर हर गंगा शब्द उचारो।
यदि शिव गोरक्ष जाप जपे , शिवयोगी भये परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
अदि शक्ति से संवाद भयो जब , माया मत्सेंद्र नाथ भयो अवतारों।
ताहि समय प्रभु नाथ मत्सेंद्र, सिंहल द्वीप को जाय सुधारो ।
राज्य योग मे ब्रह्म लगायो तब, नाद बंद को भयो प्रचारों।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
आन ज्वाला जी किन तपस्या , तब ज्वाला देवी ने शब्द उचारो।
ले जती गोरक्षनाथ को नाम तब, गोरख डिब्बी को नाम पुकारो॥
शिष्य भय जब मोरध्वज राजा ,तब गोरक्षापुर मे जाय सिधारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ज्ञान दियो जब नव नाथों को , त्रेता युग को भयो प्रचारों।
योग लियो रामचंद्र जी ने जब, शिव शिव गोरक्ष नाम उचारो ॥
नाथ जी ने वरदान दिया तब, बद्रीनाथ जी नाम पुकारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
गोरक्ष मढ़ी पे तपस्चर्या किन्ही तब, द्वापर युग को भयो प्रचारों।
कृष्ण जी को उपदेश दियो तब, ऋषि मुनि भये परम सुखारो॥
पाल भूपाल के पालनते शिव , मोल हिमाल भयो उजियारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ऋषि मुनि से संवाद भयो जब , युग कलियुग को भयो प्रचारों।
कार्य मे सही किया जब जब राजा भरतुहारी को दुःख निवारो,
ले योग शिष्य भय जब राजा, रानी पिंगला को संकट तारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
मैनावती रानी ने स्तुति की जब कुवा पे जाके शब्द उचारो।
राजा गोपीचंद शिष्य भयो तब, नाथ जालंधर के संकट तारो। ।
नवनाथ चौरासी सिद्धो मे , भगत पूरण भयो परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
दोहा :- नव नाथो मे नाथ है , आदिनाथ अवतार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जो , पूर्ण ब्रह्म करतार॥
संकट -मोचन नाथ का , सुमरे चित्त विचार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जी मेरा करो निस्तार ॥
अल्लख निरंजन ॥ आदेश ॥
ॐ र्हीम र्हाम रक्ष रक्ष शिव गोरक्ष ॥
शुक्रवार, 30 जनवरी 2009
दत्तात्रेय स्तोत्र
जटाधरं पान्डुरान्गम शूलाहस्तम कृपनिधिम ।
सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ॥ १॥
अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम.न्त्रस्य भगवान.ह नारद^इषिः ।
अनुष्टुप.ह छन्दः . श्रीदत्तपरमात्मा देवता ।
श्रीदत्तप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसा.नहार हेतवे ।
भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १॥
जराजन्मविनाशाय देहाशुद्धिकराया च ।
दिगम्बरदयामूर्ते दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ २॥
कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधाराया च ।
वेदाशास्त्रपरिग्याया दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ३॥
र्हस्वदीर्घक्र^इशास्थूला-नामगोत्र-विवर्जिता ।
प्.न्चाभूतैकदीप्ताया दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ४॥
यज्याभोकते च यज्ञाय यज्यारूपधाराया च ।
यज्याप्रियाया सिद्धाय दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ५॥
आदौ ब्रह्मा मध्य विश्ह्नुरा.न्ते देवः सदाशिवः ।
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ६॥
भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिने ।
जितेन्द्रियाजिताग्याया दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ७॥
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूपध्राय च ।
सदोदितापराब्रह्मा दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ८॥
जम्बुद्वीपमहाक्शेत्रमातापुरनिवासिने ।
जयमानासताम देवा दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ९॥
भिक्शातानाम गर^इहे ग्रामे पात्रं हेमामयम करे ।
नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १०॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्र चाकाशाभूताले ।
प्रग्यानाघनाबोधाया दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ ११॥
अवधूतासदानान्दापराब्रह्मस्वरूपिने ।
विदेहदेहरूपाय दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १२॥
सत्यम्रूपसदाचारसत्यधर्मपरायन ।
सत्याश्रयापरोक्षाया दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १३॥
शूलाहस्तागादापाने वनामालासुकंधरा ।
यग़्य़सूत्रधरब्रह्मन.ह दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १४॥
क्षराक्षरास्वरूपाया परात्पराताराया च ।
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १५॥
दत्त विद्याध्यालाक्ष्मीषा दत्त स्वात्मस्वरूपिने ।
गुनानिर्गुनारूपाया दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १६॥
शत्रुनाशाकाराम स्तोत्रं ग्यानाविग्यानादायाकम. ।
सर्वपापं शमं याति दत्तात्रेय नमो.अस्तुते ॥ १७॥
इदं स्तोत्रं महाद्दिव्यम दात्ताप्रत्याक्षकाराकम. ।
दात्तात्रेयाप्रसादाच्चा नारादेना प्रकीर्तितम. ॥ १८॥
.. इति श्रीनारादापुराने नारादाविराचितम
दत्तात्रेयस्तोत्रं सुसंपूर्नाम. ..
माया मछिन्द्र नाथाची आरती
स्मरण निरंतर करुनी घ्या मधु नित्य चरण सेवा।
शम्भू अनुग्रह मत्स्य दुगार्भी, तुम्ही ब्रह्म चोज बदले
बद्रीका श्रमी दत्तनुग्रह आदिनाथ झाले ॥
सप्तशृंगी जगदंबा प्रसन्ना साबरी रचियेली,
ब्रह्म अंजनी सकल नम्र नित भूते तव नाम स्मरति
अस्त्र कलिका वीरभद्र अन भैरव तुज नमति।।
पशुपति तू दाविसी स्वकुल भूषण सीतापति,
सरस्वतोस्तव दिधल्या भस्म हरिये गोरक्षा
नयन मोल हरी ये बघुनिया सरस देइ दीक्षा
गहीनी नाथ हो शंकर सारथी संजीवनी प्रभाव स्मरण ॥
मिन सुवर्ण विरेस्तवा रोदन हरी भक्ति शक्ति खडतर
बघती उठउन मीणा मावंदे गर्भागिरी वरती
त्रिविक्रम नृप काया प्रवेश नाथ शक्ति अजब
रेवन गुरु बंधुस्तव दत्त विनउन वर सुलभ॥
साधू द्वार ते मुक्त असावे नाग नाथशी शिकवा स्मरण
दत्त कृपेची गाता अर्पण विद्या नवनाथाशी अमोलिक
इन्द्रादि सुर अग्र पूजनी यध्नी तुज ध्याति
मुळ सिंचोनी मुळ पुष्पाना स्वस्ति येत किती ॥
तैसे नवनाथना भजता साध्य सर्व जगती
नही भक्त मुक्ते मूर्ति घोष सावर गावा , क्षेत्री
शुष्क वृक्ष चंद्रमा प्रकाश कवि दास व्हावा॥
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
श्री नवनाथ नाथपंथी धुप मंत्र
ॐ नमो आदेश. गुरूजी को आदेश. ॐ गुरूजी. पानी का बूंद, पवनका थम्ब, जहा उपजा कल्प वृक्ष का कंध।
कल्पवृक्ष वृक्ष को छाया । जिसमे तिल घुसले के किया वास।
धुनी धूपिया अगन चढाया, सिद्ध का मार्ग विरले पाया।
उरध मुख चढ़े अगन मुख जले होम धुप वासना होय ली, l
एकिस ब्रह्मंडा तैतीस करोड़, देवी देव कुन होम धुप वास।
सप्तमे पटल नव्कुली नाग , वसुक कुन होम घृत वास।
श्री नाथाजी की चरण कम पादुका कुन होम धुप वास।
अलील अनद धर्मं राजा धर्मं गुरु देव कुन होम धुप वास।
धरतरी अकास पवन पानी कुन होम धुप वास।
चाँद सूरज कूं होम धुप वास ,
तारा ग्रह नक्षत्र कूं होम धुप वास।
नवनाथ चौरासी सिद्ध कूं होम धुप वास।
अग्नि मुख धुप पवन मुख वास।
वासना वासलो थापना थाप्लो जहाँ धुप तह देव।
जहा देव तह पूजा . अलख निरंजन और न दूजा।
इति मंत्र पढ़ धुप ध्यान करे सो जोगी अमरपुर तारे।
बिना मंत्र धुप ध्यान करे खाय जरे न वाचा फुरे।
इतना धुप का मंत्र जप संपूर्ण सही। ।
अनंत कोट सिद्ध मे श्री नाथजी कही,
नाथजी गुरूजी कूं आदेश आदेश, , ,
ॐ चैतन्य कानिफ नाथाय नमः .. ॐ शिव गोरक्ष... । । । । ॐ । । । अल्लख । । ।
बुधवार, 28 जनवरी 2009
.. श्री नवनाथ मंगलाष्टक .. .
आदिनाथ गुरुदेव नाथपंथी चालका।
वंदितो मी भक्तिभाव नित्यानाथा तव पादुका.
विश्व कर्ता उमाकांत नाथ शक्ति तुझी सकल
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
दीननाथा दत्तात्रेय नाथपंथी गुरुदेव
मंत्रसिद्धा, तंत्र सिद्ध योगीनाथ तुझी सेवा
अलख निरंजन वदता नाथ आदेश हा द्यावा
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
मत्स्येन्द्र नाथ माया देवा नाथपंथी योगिराज
कॉल ज्ञानी सिद्ध नाथ तापोधानी महाराजा
योग माया तुझी सेवा मंत्र सिद्ध ज्ञान राजा
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
गोरक्षनाथा योगी राजा नाथपंथी सुधारक
ज्ञान सिद्धि तापोधानी ध्यान समनी अवधूत चिन्तिका
साधकांचा गुरु होई योगी ठेवा साधका
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
जालिंदर नाथ सत्यानाथा नाथपंथी तपोधनी
कापालिका ब्रह्म रूपा नित्य प्रिया योग समाधी
गुरुकृपा तुझी सेवा मोक्ष सधे तव साधनी
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
कानिफा प्रबुद्ध नारायणा नाथपंथी कापालिका
ब्रह्मचर्य तुझा ठेवा सिद्ध नाथ कान्हुपा
ग्रन्थ करता योगिराज मंत्रसिद्धा गुरु सेवक
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
गहिनिनाथा अचल्नाथा नाथपंथी सिद्धानाथा
तपयोगी मंत्रदेशी ज्ञान तुझे ज्ञान नाथ
भक्त सरे पन्ध्रिला योगी तू पंढरी नाथा
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
रेवन नाथ दंड नाथा नाथपंथी दैवी माया
चर्पटी कुर्मनाथा रामपंथी योगमाया
नागनाथा नटेश-वरा योगसिद्धि गुरु छाया
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
भरतरी नाथ सत्यानाथा नाथपंथी हा बैरागी
नितिधर्मा राजयोग सिद्धामंत्र मंत्रयोगी
नाथपंथी सर्वव्यापी कलियुगी सिद्धयोगी
भक्त तुझा रक्षा नाथ कुर्यात सदा मंगलम . शिवमंगलम, गुरुमंगलम॥
॥ ॐ चैतन्य कानिफ नाथाय नमः॥
मंगलवार, 27 जनवरी 2009
श्री गोरक्ष अष्टोत्तर नामावली
ॐ उं श्री गोरक्षाया नमः
र्हीं श्री गोरक्षाया नमः
श्री श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री गों श्री गोराक्षनाथाया नमः
श्री लीं श्री गोरक्षनाथय नमः
श्री हं श्री गोरक्ष नाथायनमः
श्री हाँ श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री निरंजनात्मा नेय नमः
श्री हूँ श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री सं श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री हंसा श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री गुरुपद जप सत्याय नमः
श्री अद्वैताया नमः
श्री प्राण चैतन्याय नमः
श्री नित्य निर्गुनाया नमः
श्री महत्मनेया नमः
श्री निल्ग्रिवाया नमः
श्री सोहमसद्याकाया नमः
श्री ओमकार रुपेय नमः
श्री गुरु भक्तया नमः
श्री श्री गुरु भौमाय नमः
श्री श्री गुरुचरण प्रियाय नमः
श्री गुरु उपसकाया नमः
श्री श्री गुरु भक्तिप्रियाय नमः
श्री योगेश्वराय नमः
ॐ श्री राजयोगाया नमः
ॐ श्री अस्त्र विद्या प्रविनाय नमः
ॐ अस्त्र विद्या प्रविनाय नमः
श्री वायु नंदा नाय नमः
श्री कमंदालू धार्काय नमः
श्री त्रिशूल धार काय नमः
शिर गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती
सुर मुनि जन ध्यावत सुर नर मुनि जन सेवत ।
सिद्ध करे सब सेवा, श्री अवधू संत करे सब सेवा। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ १॥
ॐ गुरूजी योग युगती कर जानत मानत ब्रह्म ज्ञानी ।
श्री अवधू मानत सर्व ज्ञानी।
सिद्ध शिरोमणि रजत संत शिरोमणि साजत।
गोरक्ष गुन ज्ञानी , श्री अवधू गोरक्ष सर्व ज्ञानी । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 2॥
ॐ गुरूजी ज्ञान ध्यान के धरी गुरु सब के हो हितकारी।
श्री अवधू सब के हो सुखकारी ।
गो इन्द्रियों के रक्षक सर्व इन्द्रियों के पालक।
रखत सुध साडी, श्री अवधू रखत सुध सारी। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 3॥
ॐ गुर्जी रमते श्रीराम सकल युग माहि चाय है नाही।
श्री अवधू माया है नाही ।
घाट घाट के गोरक्ष व्यापे सर्व घाट श्री नाथ जी विराजत।
सो लक्ष मन माहि श्री अवधू सो लक्ष दिल माहि॥ शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ४॥
ॐ गुरूजी भस्मी गुरु लसत सर्जनी है अंगे।
श्री अवधू जननी है संगे ।
वेड उचारे सो जानत योग विचारे सो मानत ।
योगी गुरु बहुरंगा श्री अवधू बाले गोरक्ष सर्व संगा। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ५॥
ॐ गुरूजी कंठ विराजत सेली और शृंगी जत मत सुखी बेली ।
श्री अवधू जत सैट सुख बेली ।
भगवा कंथा सोहत- गेरुवा अंचल सोहत ज्ञान रतन थैली ।
श्री अवधू योग युगती झोली। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ६॥
ॐ गुरूजी कानो में कुंडल राजत साजत रवि चंद्रमा ।
श्री अवधू सोहत मस्तक चंद्रमा ।
बजट शृंगी नादा- गुरु बाजत अनहद नादा -गुरु भाजत दुःख द्वंदा।
श्री अवधू नाशत सर्व संशय । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ७॥
ॐ गुरु जी निद्रा मरो गुरु कल संहारो -संकट के हो बेरी।
श्री अवधू दुष्टन के हो बेरी।
करो कृपा संतान पर गुरु दया पालो भक्तन शरणागत तुम्हारी । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ८॥
ॐ गुरु जी इतनी श्रीनाथ जी की संध्या आरती।
निष् दिन जो गावे - श्री अवधू सर्व दिन रट गावे ।
वरनी राजा रामचंद्र स्वामी गुरु जपे राजा , रामचंद्र योगी ।
मनवांछित फल पावे श्री अवधू सुख संपत्ति फल पावे। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ९॥