जय जय मछिन्द्र दत्ता , जय कवि नारायणा देवा
स्मरण निरंतर करुनी घ्या मधु नित्य चरण सेवा।
शम्भू अनुग्रह मत्स्य दुगार्भी, तुम्ही ब्रह्म चोज बदले
बद्रीका श्रमी दत्तनुग्रह आदिनाथ झाले ॥
सप्तशृंगी जगदंबा प्रसन्ना साबरी रचियेली,
ब्रह्म अंजनी सकल नम्र नित भूते तव नाम स्मरति
अस्त्र कलिका वीरभद्र अन भैरव तुज नमति।।
पशुपति तू दाविसी स्वकुल भूषण सीतापति,
सरस्वतोस्तव दिधल्या भस्म हरिये गोरक्षा
नयन मोल हरी ये बघुनिया सरस देइ दीक्षा
गहीनी नाथ हो शंकर सारथी संजीवनी प्रभाव स्मरण ॥
मिन सुवर्ण विरेस्तवा रोदन हरी भक्ति शक्ति खडतर
बघती उठउन मीणा मावंदे गर्भागिरी वरती
त्रिविक्रम नृप काया प्रवेश नाथ शक्ति अजब
रेवन गुरु बंधुस्तव दत्त विनउन वर सुलभ॥
साधू द्वार ते मुक्त असावे नाग नाथशी शिकवा स्मरण
दत्त कृपेची गाता अर्पण विद्या नवनाथाशी अमोलिक
इन्द्रादि सुर अग्र पूजनी यध्नी तुज ध्याति
मुळ सिंचोनी मुळ पुष्पाना स्वस्ति येत किती ॥
तैसे नवनाथना भजता साध्य सर्व जगती
नही भक्त मुक्ते मूर्ति घोष सावर गावा , क्षेत्री
शुष्क वृक्ष चंद्रमा प्रकाश कवि दास व्हावा॥
स्मरण निरंतर करुनी घ्या मधु नित्य चरण सेवा।
शम्भू अनुग्रह मत्स्य दुगार्भी, तुम्ही ब्रह्म चोज बदले
बद्रीका श्रमी दत्तनुग्रह आदिनाथ झाले ॥
सप्तशृंगी जगदंबा प्रसन्ना साबरी रचियेली,
ब्रह्म अंजनी सकल नम्र नित भूते तव नाम स्मरति
अस्त्र कलिका वीरभद्र अन भैरव तुज नमति।।
पशुपति तू दाविसी स्वकुल भूषण सीतापति,
सरस्वतोस्तव दिधल्या भस्म हरिये गोरक्षा
नयन मोल हरी ये बघुनिया सरस देइ दीक्षा
गहीनी नाथ हो शंकर सारथी संजीवनी प्रभाव स्मरण ॥
मिन सुवर्ण विरेस्तवा रोदन हरी भक्ति शक्ति खडतर
बघती उठउन मीणा मावंदे गर्भागिरी वरती
त्रिविक्रम नृप काया प्रवेश नाथ शक्ति अजब
रेवन गुरु बंधुस्तव दत्त विनउन वर सुलभ॥
साधू द्वार ते मुक्त असावे नाग नाथशी शिकवा स्मरण
दत्त कृपेची गाता अर्पण विद्या नवनाथाशी अमोलिक
इन्द्रादि सुर अग्र पूजनी यध्नी तुज ध्याति
मुळ सिंचोनी मुळ पुष्पाना स्वस्ति येत किती ॥
तैसे नवनाथना भजता साध्य सर्व जगती
नही भक्त मुक्ते मूर्ति घोष सावर गावा , क्षेत्री
शुष्क वृक्ष चंद्रमा प्रकाश कवि दास व्हावा॥
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