वन्दना एवं आरती
"कर्पूर गोरम करुनावातारम, संसार सारं भुजगेन्द्र हरम |
सदा वसंतम ह्रदयारविन्दे, भावं भवानी सहितं नमामि ||
नारायानो त्वं निखिलेश्वारो त्वं,
माता-पिता गुरु आत्मा त्वमेवं |
ब्रह्मा त्वं विष्णुश्च रुद्रस्त्वमेवं;
सिद्धाश्रमो त्वं गुरुत्वं प्रनाम्यम ||
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विश्नुह गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मि श्री गुरुवे नमः ||"
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
वन्दना एवं आरती
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