गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
शनिवार, 24 जनवरी 2009
सदगुरू श्री कानिफनाथ महाराज आरती ..........
जय जय कानिफनाथ भगवन योगिराज मूर्ति॥
पतित पवन ओवालू तुज सदभावे आरती॥
महर्षि पुत्र shri प्रबुद्ध नामे नारायण मूर्ति॥
गज कर्नामधे द्वादश वर्षे केलि निज वस्ति ॥
नाथ जलिंदर कृपा प्रसादे वरियेली ब्रह्म स्तिथि ॥
द्वादश वर्षे बदरिका वाणी केलि तप पूर्ति ॥
नग्न देव उप्राहे दे ही झोम्ब फले घेती ॥
विनम्र भावे वस्त्र नेस्वुनी मिल्विली वर प्राप्ति॥ १॥
गंध केशरी सुगंध पुष्पे अत्तराची प्रीति ॥
नेसुनिया वस्त्र भरजरी कफनी मोहकनी॥
सुवर्ण मुद्रा करनी बोटी मुद्रिका खुलती ॥
सुवर्ण - गुम्फित रुद्राक्षाची मॉल गला रुलती
सुवर्ण मंडित पायी खडावा कुबडी सोन्याची ॥
बाल रवि सम तलपे मूर्ति दीनानाथ तुमची ॥ २॥
गादी मखमली लोड गलीचा सिलिका अम्बारी
धम चमरे चौरी धलिती होउनी हर्षा भरी ॥
चाले निशान पुढती वाजे वाजंत्री बोलती ॥
भालदार चोपदार गति बिदावली गजरी ॥
सत शिष्यांचा मेला संगे फिरोनी अवनिवरी॥
हे नाथ तव थाट सवारिया वरात कोठावारी॥ ३॥
नाथ तुमचा राजयोग परी विरक्तता विषयी ॥
स्री राज्यमधे मचिन्द्र नाते परिक्षिले समयी॥
प्रेमे गोपीचंद रक्षिला असोनी अपराधी
जती जलिंदर प्रसन्ना झाले केवल कृपा विधि ॥
जन उपकारा साठी साबरी विद्या नियमावली ॥
सिद्ध हाती ओपुनी अवनी वर्ती विस्तारिली ॥ ४॥
अवनी भ्रमुन निजपन्था ची महती वाढविली ॥
समाधी स्थापुन स्वानंदाने मढ़ी पावन केलि ॥
समधिस्त परी अवनीवरती गुप्त रुपे फिरसी ॥
जो कोणी भाग्याचा पुतला तयासी अनुग्रहासी॥
गोरक्शंकित विजयमायाचा दास गुरु भजति॥
तव गुन गाता आनंद झाला लीन सदा चरणी ॥
जय जय कानिफ नाथ भगवन योगिराज मूर्ति ॥
पतित पावन ओवालू तुज सद भावे आरती॥ ५॥
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