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गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009
॥ श्री गुरू ध्यानम्
सोमवार, 5 अक्टूबर 2009
बाबा गोरख नाथ
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गगन शिखर मंह बालक बोलान्ही, वाका नांव धरहुगे कैसा ||१||
सप्त धातु का काया प्यान्जरा, टा मांही जुगति बिन सूवा |
सतगुरु मिली तो उबरे बाबू, नन्ही तो पर्ली हूवा ||२||
आवै संगे जाई अकेला | ताथैन गोरख राम रमला ||
काया हंस संगी हवाई आवा | जाता जोगी किनहू न पावा ||
जीवत जग में मुआ समान | प्राण पुरिस कट किया पयान ||
जामन मरण बहुरि वियोगी | ताथैन गोरख भैला योगी ||३||
गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वासा |
सगुरा होई सो भर-भर पीया, निगुरा जाय प्यासा ||४||
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी |
अपनी आत्मा आप विचारों, सोवो पाँव पसारी ||५||
ऐसा जाप जपो मन लाई | सोऽहं सोऽहं अजपा गाई ||
आसन द्रिधा करी धारो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ||
नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||
छः साईं सहंस इकीसु जाप | अनहद उपजी आपे आप ||
बैंक नाली में उगे सूर | रोम-रोम धुनी बाजी टूर ||
उल्टे कमल सहस्रदल बॉस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश ||६||
खाए भी मारिये अनाखाये भी मारिये |
गोरख कहै पुता संजमी ही तरिये ||७||
धाये न खैबा भूखे न मरिबा |
अहिनिसी लेबा ब्रह्मगिनी का भेवं ||
हाथ ना करीबा, पड़े न रहीबा |
यूँ बोल्या गोरख देवं ||८||
कई चलिबा पन्था, के सेवा कंथा |
कई धरिबा ध्यान, कई कठिबा जनान ||९||
हबकी न बोलिबा, थाबकी न चलिबा, धीरे धरिबा पावं |
गरब न करीबा, सहजी रहीबा, भंंत गोरख रावं. ||१०||
गोरख कहै सुनहु रे अबधू, जग में ऐसे रहना |
आंखे देखिबा, काने सुनिबा, मुख थीं कछू न कहना ||
नाथ कहै तुम आपा राखो, हाथ करी बाद न करना | याहू जग है कांटे की बाडी, देखि दृष्टि पग धारणा ||११||
मन में रहना, भेद न कहना, बोलिबा अमृत बाँई |
आगिका अगिनी होइबा अबधू, आपण होइबा पानी ||१२||
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