गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009

॥ श्री गुरू ध्यानम्

ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ श्री गुरू ध्यानम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ
सहस्त्र दल पंकजे सकल शीत रश्मि प्रभम् ।
वर अभय कराम्बुजम् विमल गंध पुष्पाम्बरम् ॥
प्रसन्न वदनेक्षणं सकल देवता रुपिणम् ।
स्मरेत् शिरसि हंसगं तद् अभिधान पूर्वम् गुरुम् ॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ श्री कुलगुरु स्मरणम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ
प्रह्लादा नन्द नाथाख्यम् सनका नन्द नाथकम् ।
कुमारा नन्द नाथाख्यम् वशिष्ठा नन्द नाथकम् ॥
क्रोधा नन्द सुखा नन्दौ ध्याना नन्दम् ततः परम् ।
बोधा नान्दम् ततश्चैव ध्यायेत् कुल मुखोपरि ॥
महा रस रसोल्लस - हृदया घूर्ण लोचनाः ।
कुला लिंगन सम्भिन्न चूर्णिता शेष - तामसाः ॥
कुल शिष्यैः परिवृताः पूर्णान्तः करणो धताः ।
वर अभय कराः सर्वे कुल तन्त्रार्थ वादिन ॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ श्री गुरू कवचम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ
सहस्त्रारे महा-पद्मे कर्पुर धवलो गुरुः ।
वामोरु स्थित शक्तिर्यः सर्वत्र परि रक्षतु ॥
परमाख्यो गुरुः पातु शिरसम् मम वल्लभे ।
परा पराख्यो नासाम् मे परमेष्ठी मुखम् सदा ॥
कण्ठम् मम सदा पातु प्रह्लादा नन्द नाथकः ।
बाहू द्वौ सनका नन्दः कुमारा नन्द नाथकः ॥
वशिष्ठा नन्द नाथश्च हृदयम् पातु सर्वदा ।
क्रोधा नन्दः कटिम् पातु सुखा नन्दः पदम् मम ॥
ध्याना नन्दश्च सर्वांगम् बोधा नन्दश्च कानने ।
सर्वत्र गुरवः पातु सर्व ईश्वर रुपिणः ॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ श्री गुरू स्तोत्रम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ ॐ नमः श्री नाथाय ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
जीवात्मनं परमात्मनं दानं ध्यानं योगो ज्ञानं।
उत्कल काशी गंगा मरणं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥1॥
प्राणं देहं गेहं राज्यं स्वर्गं भोगं योगं मुक्तिं।
भार्याम् इष्टं पुत्रं मित्रं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥2॥
वान प्रस्थं यतिविध धर्मं पारमहंस्यं भिक्षुक चरितं।
साधोः सेवां बहुसुख भुक्तिं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥3॥
विष्णो भक्तिं पूजन रक्तिं वैष्णव सेवां मातरि भक्तिं।
विष्णोरिव पितृसेवन योगं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥4॥
प्रत्याहारं च इन्द्रिय-यजनं प्राणायां न्यास विधानं।
इष्टे पूजा जप तप भक्तिः न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥5॥
काली दुर्गा कमला भुवना त्रिपुरा भीमा बगला पूर्णा।
श्रीमातंगी धूमा तारा न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥6॥
मात्स्यं कौर्मं श्रीवाराहं नरहरि रूपं वामन चरितं।
नर नारायण चरितं योगं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥7॥
श्रीभृर्गु देवं श्रीरघुनाथं श्रीयदु नाथं बौद्धं कल्क्यं।
अवतारा दश वेद विधानं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥8॥
गंगा काशी कांची द्वारा माया अयोध्या अवन्ती मथुरा।
यमुना रेवा पुष्करतीर्थं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥9॥
गोकुल गमनं गोपुर रमणं श्री वृन्दावन मधुपुर रटनम्।
एतत् सर्वंसुन्दरि मातः न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥10॥
तुलसी सेवा हरि हर भक्तिः गंगा सागर संगम मुक्तिः।
किमपरम् अधिकम् कृष्णे भक्तिः न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥11॥
एतत् स्तोत्रं पठति च नित्यं मोक्ष ज्ञानी सोऽपि च धन्यम्।
ब्रह्माण्ड अन्तर्यद्-यद् ध्येयं न गुरोः अधिकम् न गुरोः अधिकम् ॥12॥

--------------------- ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ------------------------------------ ॥ सुशान्तिर्भवतु ॥ --------------

॥हरि ॐ तत्सत्॥

सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

बाबा गोरख नाथ

बाबा गोरख नाथ
बस्ती न शून्यम शून्यम न बसतू, अगम अगोचर ईसू |
गगन शिखर मंह बालक बोलान्ही, वाका नांव धरहुगे कैसा ||१||

सप्त धातु का काया प्यान्जरा, टा मांही जुगति बिन सूवा |
सतगुरु मिली तो उबरे बाबू, नन्ही तो पर्ली हूवा ||२||

आवै संगे जाई अकेला | ताथैन गोरख राम रमला ||
काया हंस संगी हवाई आवा | जाता जोगी किनहू न पावा ||
जीवत जग में मुआ समान | प्राण पुरिस कट किया पयान ||
जामन मरण बहुरि वियोगी | ताथैन गोरख भैला योगी ||३||

गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वासा |
सगुरा होई सो भर-भर पीया, निगुरा जाय प्यासा ||४||

गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी |
अपनी आत्मा आप विचारों, सोवो पाँव पसारी ||५||

ऐसा जाप जपो मन लाई | सोऽहं सोऽहं अजपा गाई ||
आसन द्रिधा करी धारो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ||
नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||
छः साईं सहंस इकीसु जाप | अनहद उपजी आपे आप ||
बैंक नाली में उगे सूर | रोम-रोम धुनी बाजी टूर ||
उल्टे कमल सहस्रदल बॉस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश ||६||

खाए भी मारिये अनाखाये भी मारिये |
गोरख कहै पुता संजमी ही तरिये ||७||

धाये न खैबा भूखे न मरिबा |
अहिनिसी लेबा ब्रह्मगिनी का भेवं ||
हाथ ना करीबा, पड़े न रहीबा |
यूँ बोल्या गोरख देवं ||८||

कई चलिबा पन्था, के सेवा कंथा |
कई धरिबा ध्यान, कई कठिबा जनान ||९||

हबकी न बोलिबा, थाबकी न चलिबा, धीरे धरिबा पावं |
गरब न करीबा, सहजी रहीबा, भंंत गोरख रावं. ||१०||

गोरख कहै सुनहु रे अबधू, जग में ऐसे रहना |
आंखे देखिबा, काने सुनिबा, मुख थीं कछू न कहना ||
नाथ कहै तुम आपा राखो, हाथ करी बाद न करना | याहू जग है कांटे की बाडी, देखि दृष्टि पग धारणा ||११||

मन में रहना, भेद न कहना, बोलिबा अमृत बाँई |
आगिका अगिनी होइबा अबधू, आपण होइबा पानी ||१२||