गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
बुधवार, 31 दिसंबर 2008
शनिवार, 27 दिसंबर 2008
श्री रुद्रं
श्रीरुद्रम
ॐ नमो भगवते रुद्राय
नमस्ते रुद्रमंयावौतोता इश्हावे नामाह
नमस्ते अस्तु धनवान बहुभ्यामुता ते नमः
यता इश्हुह शिवतमा शिवम् बभूव ते धनुः
शिवा शरव्य या तवा तय नो रुद्र मृदय
या ते रुद्र शिवा तनु राघोरापपकशिनी
तय नस्तनुवा शान्तमय गिरिशंताभिचाकशिही
यामिश्हुम गिरिशंता हस्ते बिभार्श्ह्यास्तावे
शिवम् गिरित्र तं कुरु मा हिसिः पुरुश्हम जगत
शिवेन वचसा तव गिरिशाच्छा वदमसi
यथा नह सर्वमिज्जगादयाक्स्मासुमाना असत
ॐ नमो भगवते रुद्राय
नमस्ते रुद्रमंयावौतोता इश्हावे नामाह
नमस्ते अस्तु धनवान बहुभ्यामुता ते नमः
यता इश्हुह शिवतमा शिवम् बभूव ते धनुः
शिवा शरव्य या तवा तय नो रुद्र मृदय
या ते रुद्र शिवा तनु राघोरापपकशिनी
तय नस्तनुवा शान्तमय गिरिशंताभिचाकशिही
यामिश्हुम गिरिशंता हस्ते बिभार्श्ह्यास्तावे
शिवम् गिरित्र तं कुरु मा हिसिः पुरुश्हम जगत
शिवेन वचसा तव गिरिशाच्छा वदमसi
यथा नह सर्वमिज्जगादयाक्स्मासुमाना असत
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