गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,
बुधवार, 30 जुलाई 2008
gorakh mantra
ॐ नमो गुरू मछिन्द्र, शब्द साँचा पिण्ड काचा मेरा भक्ति, गुरूका शक्ति नवनाथै जगाऊँ, चौराषीनाथै जगाऊँ फूरो मंत्र ईश्वरो गुरू गोरख वाचा ।।
gorakh mantra
ॐ नमो गुरू मछिन्द्र, शब्द साँचा पिण्ड काचा मेरा भक्ति, गुरूका शक्ति नवनाथै जगाऊँ, चौराषीनाथै जगाऊँ फूरो मंत्र ईश्वरो गुरू गोरख वाचा ।।
शनिवार, 12 जुलाई 2008
सदस्यता लें
संदेश (Atom)