मंगलवार, 27 जनवरी 2009

शिर गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती

गुरूजी शिव जय जय गोरक्ष देवाश्री अवधू हर हर गोरक्ष देवा
सुर मुनि जन ध्यावत सुर नर मुनि जन सेवत
सिद्ध करे सब सेवा, श्री अवधू संत करे सब सेवाशिव जय जय गोरक्ष देवा

गुरूजी योग युगती कर जानत मानत ब्रह्म ज्ञानी
श्री अवधू मानत सर्व ज्ञानी
सिद्ध शिरोमणि रजत संत शिरोमणि साजत
गोरक्ष गुन ज्ञानी , श्री अवधू गोरक्ष सर्व ज्ञानीशिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 2॥

गुरूजी ज्ञान ध्यान के धरी गुरु सब के हो हितकारी
श्री अवधू सब के हो सुखकारी
गो इन्द्रियों के रक्षक सर्व इन्द्रियों के पालक
रखत सुध साडी, श्री अवधू रखत सुध सारीशिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 3॥

गुर्जी रमते श्रीराम सकल युग माहि चाय है नाही
श्री अवधू माया है नाही
घाट घाट के गोरक्ष व्यापे सर्व घाट श्री नाथ जी विराजत
सो लक्ष मन माहि श्री अवधू सो लक्ष दिल माहिशिव जय जय गोरक्ष देवा

गुरूजी भस्मी गुरु लसत सर्जनी है अंगे
श्री अवधू जननी है संगे
वेड उचारे सो जानत योग विचारे सो मानत
योगी गुरु बहुरंगा श्री अवधू बाले गोरक्ष सर्व संगाशिव जय जय गोरक्ष देवा

गुरूजी कंठ विराजत सेली और शृंगी जत मत सुखी बेली
श्री अवधू जत सैट सुख बेली
भगवा कंथा सोहत- गेरुवा अंचल सोहत ज्ञान रतन थैली
श्री अवधू योग युगती झोलीशिव जय जय गोरक्ष देवा

गुरूजी कानो में कुंडल राजत साजत रवि चंद्रमा
श्री अवधू सोहत मस्तक चंद्रमा
बजट शृंगी नादा- गुरु बाजत अनहद नादा -गुरु भाजत दुःख द्वंदा
श्री अवधू नाशत सर्व संशयशिव जय जय गोरक्ष देवा

गुरु जी निद्रा मरो गुरु कल संहारो -संकट के हो बेरी
श्री अवधू दुष्टन के हो बेरी
करो कृपा संतान पर गुरु दया पालो भक्तन शरणागत तुम्हारीशिव जय जय गोरक्ष देवा

गुरु जी इतनी श्रीनाथ जी की संध्या आरती
निष् दिन जो गावे - श्री अवधू सर्व दिन रट गावे
वरनी राजा रामचंद्र स्वामी गुरु जपे राजा , रामचंद्र योगी
मनवांछित फल पावे श्री अवधू सुख संपत्ति फल पावेशिव जय जय गोरक्ष देवा

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