मंगलवार, 4 नवंबर 2008

गोरक्ष स्वरोपम



ॐ शिव स्वरोपम गोरक्षनाथं निरंजन रिद्धि सिद्धि वर दायकं
महा मत्सेयान्द्र नन्दनं नाती पुत्र अदिनाथं जटिल भिध सेल सिंगी मस्तक चंद्र सुशोभितं II
झोली झंडी मिन मेखला कटी वस्त्र मृग छाला धारानाम योगी युक्तः समाधिना वट वृक्ष छाया पद्मासनम
मा देश सतु मम त्रि योगेश्वारो , सर्वदा मम हृदय निवासनम II