शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

श्री शिवापंचाक्षर स्तोत्र

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय

भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय

तस्मै न काराय नम: शिवाय॥1॥

मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय

नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय।

तस्मै म काराय नम: शिवाय॥2॥

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द-

सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।

श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय

तस्मै शि काराय नम: शिवाय ॥3॥

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य-

मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।

चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय

तस्मै व काराय नम: शिवाय ॥4॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय

पिनाकहस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगम्बराय

तस्मै य काराय नम: शिवाय॥5॥

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥6॥ अर्थ :- जिनके कण्ठ में साँपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अङ्गराज (अनुलेपन) है, दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं (अर्थात् जो नग्न हैं) उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर न कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥1॥ गङ्गाजल और चन्दन से जिनकी अर्चना हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्यान्य कुसुमों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर म कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥2॥ जो कल्याणस्वरूप हैं, पार्वती जी के मुखकमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिए जो सूर्य स्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ शि कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥3॥ वसिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन व कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥4॥ जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव य कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥5॥ जो शिव के समीप इस पवित्र पञ्चाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है॥6॥