शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
तुम सत चित आनंद सदाशिव आगम -निगम परे
योग प्रचारण कारण युग युग गोरख रूप धरे............१ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
अकाल-सकल-,कुल-अकुल,परापर,अलख निरंजन ए
भावः-भव-विभव-पराभव-कारन ,योगी ध्यान धरे..............२शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
अष्ट सिद्धि नव निधि कर जोर लोटत चरण तले
भुक्ति मुक्ति सुख सम्पति यती पति सब तब एव करे....................३ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
कुंडल मंडित गंडा स्थल छवि कुंचित केश धरे
सदय नयन स्मरानन युवतन अंग अंग ज्योति जारे.............४ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
अमर काया अवधूत अयोनिज सुर नर नमन करे
तब कृपया पराया परिवेष्टित अधमहू पर तारे.............५ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
कृष्ण रुक्मिणी परिणय प्रकरण देवन विघ्न करे
सुनी रुषी मुनि बिनती तुम प्रकट कंगन बन्ध करे......६ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
सदगुरु विषम विषय विष मूर्छित तिरिया जल परे
जग मछन्दर गोरख आया गा उधर करे.........७ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
प्रिय वियोग भरतरी विहल विकल मसान फिरे
महा मोहतम दयानिधि सिद्धि समृद्ध करे...........८ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी ,अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी,“ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई ,असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान ,नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई ||,छः साईं सहंस इकिसु जप | अनहद उपजी अपि एपी ||,बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||,उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा |,सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।,