बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

मयूरेशस्तोत्रम्

ब्रह्मोवाच पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा। मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्। गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया। सर्वविघन्हरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि विभ्रतम्। नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्॥

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्। सदसद्वयक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्। सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्। भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्। समाष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्॥

सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्। सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्। अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

मयूरेश उवाच

इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम्। सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्॥

कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्। आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्॥ अर्थ :- ब्रह्माजी बोले- जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएँ करते हैं; जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य (अचिन्त्य) है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ। जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघन्हारी देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ। जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश को मैं भक्तिभाव से नमस्कार करता हूँ। इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात जिनका स्तवन करता है तथा जो सत् , असत् , व्यक्त और अव्यक्तरूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ। जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान् मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ। जो पार्वतीजी को पुत्ररूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान् शंकर का भी आनन्द बढाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ। मुनि जिनका ध्यान करते, मुनि जिनके गुण गाते तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन समष्टि-व्यष्टिरूप मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ, जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य ज्ञानस्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ। जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभव-सम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ।

मयूरेश ने कहा- यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति करानेवाला और समस्त पापों का नाशक है। मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवाञिछत वस्तु देनेवाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करनेवाला है। सात दिन इसका पाठ किया जाय तो कारागार में पडे हुये मनुष्यों को भी छुडा लाता है। यह शुभ स्तोत्र आधि (मानसिक चिन्ता) तथा व्याधि (शरीरगत रोग) को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है।

नाथपंथी मुद्रा .....

कान फाडूनि या मुद्रा ते घालितीनाथ म्हनविति जगामाजी
घालोनिया फेरा मागती द्रव्यासीपरी शंकरासी नोखती
पोट भरवाया शिकती उपायतुका म्हणे जाय नरक लोका