बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

प्रथम शैलपुत्री

भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्रीके रूप में है। हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्रीकहा गया। भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। इस स्वरूप का पूजन आज के दिन किया जाएगा।

आवाहन, स्थापना और विसर्जन ये तीनों आज प्रात:काल ही होंगे। किसी एकांत स्थल पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं, बोयें। उस पर कलश स्थापित करें। कलश पर मूर्ति स्थापित करें, भगवती की मूर्ति किसी भी धातु अथवा मिट्टी की हो सकती है। कलश के पीछे स्वास्तिकऔर उसके युग्म पा‌र्श्व में त्रिशूल बनायें। जिस कक्ष में भगवती की स्थापना करें, उस कक्ष के उत्तर और दक्षिण दिशा में दो-दो स्वास्तिकपिरामिड लगा दें।

ध्यान:-वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।

पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।

पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।

प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्।

स्तोत्र:-प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

भुक्ति मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।

कवच:-ओमकार: मेशिर: पातुमूलाधार निवासिनी

हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी।

श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।

हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत।

फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।

शैलपुत्रीके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां होती हैं।

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