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जय जय कानिफनाथ भगवन योगिराज मूर्ति॥
पतित पवन ओवालू तुज सदभावे आरती॥
महर्षि पुत्र shri प्रबुद्ध नामे नारायण मूर्ति॥
गज कर्नामधे द्वादश वर्षे केलि निज वस्ति ॥
नाथ जलिंदर कृपा प्रसादे वरियेली ब्रह्म स्तिथि ॥
द्वादश वर्षे बदरिका वाणी केलि तप पूर्ति ॥
नग्न देव उप्राहे दे ही झोम्ब फले घेती ॥
विनम्र भावे वस्त्र नेस्वुनी मिल्विली वर प्राप्ति॥ १॥
गंध केशरी सुगंध पुष्पे अत्तराची प्रीति ॥
नेसुनिया वस्त्र भरजरी कफनी मोहकनी॥
सुवर्ण मुद्रा करनी बोटी मुद्रिका खुलती ॥
सुवर्ण - गुम्फित रुद्राक्षाची मॉल गला रुलती
सुवर्ण मंडित पायी खडावा कुबडी सोन्याची ॥
बाल रवि सम तलपे मूर्ति दीनानाथ तुमची ॥ २॥
गादी मखमली लोड गलीचा सिलिका अम्बारी
धम चमरे चौरी धलिती होउनी हर्षा भरी ॥
चाले निशान पुढती वाजे वाजंत्री बोलती ॥
भालदार चोपदार गति बिदावली गजरी ॥
सत शिष्यांचा मेला संगे फिरोनी अवनिवरी॥
हे नाथ तव थाट सवारिया वरात कोठावारी॥ ३॥
नाथ तुमचा राजयोग परी विरक्तता विषयी ॥
स्री राज्यमधे मचिन्द्र नाते परिक्षिले समयी॥
प्रेमे गोपीचंद रक्षिला असोनी अपराधी
जती जलिंदर प्रसन्ना झाले केवल कृपा विधि ॥
जन उपकारा साठी साबरी विद्या नियमावली ॥
सिद्ध हाती ओपुनी अवनी वर्ती विस्तारिली ॥ ४॥
अवनी भ्रमुन निजपन्था ची महती वाढविली ॥
समाधी स्थापुन स्वानंदाने मढ़ी पावन केलि ॥
समधिस्त परी अवनीवरती गुप्त रुपे फिरसी ॥
जो कोणी भाग्याचा पुतला तयासी अनुग्रहासी॥
गोरक्शंकित विजयमायाचा दास गुरु भजति॥
तव गुन गाता आनंद झाला लीन सदा चरणी ॥
जय जय कानिफ नाथ भगवन योगिराज मूर्ति ॥
पतित पावन ओवालू तुज सद भावे आरती॥ ५॥
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